प्रतिरोध किसे कहते हैं
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जानिए , प्रतिरोध किसे कहते हैं
प्रतिरोध (Resistance)
हम जानते हैं कि जब किसी चालक के सिरों के मध्य विभवान्तर लगाया जाता है,
तो उसमें से होडा विद्युत् धारा प्रवाहित होने लगती है।
इस समय चालक विद्युत् धारा के मार्ग में रुकावट डालता है।
यह रुकावट पतले तार में अधिक तथा मोटे तार में कम होती है।
कोई चालक विद्युत् धारा के मार्ग में जो रुकावट डालता है, उसे उसका प्रतिरोध कहते हैं। ऐसे चालक को प्रतिरोधक (Resistor) कहते हैं।
वास्तव में जब चालक के सिरों के मध्य विभवान्तर लगाया जाता है, तो विद्युत् क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन त्वरित होकर चलने लगते हैं।
ये इलेक्ट्रॉन मार्ग में आने वाले परमाणुओं से टकराते हुए एवं उनके इलेक्ट्रॉनों को निकालते हुए एक निश्चित गति से आगे बढ़ते हैं।
इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों को एक विरोधी बल का सामना करना पड़ता है।
यह विरोधी बल ही उस चालक का प्रतिरोध होता है।
विद्युत्रोधी या कुचालक का प्रतिरोध अनन्त होता है।
किसी चालक का प्रतिरोध लगाये गये विभवान्तर और उसमें बहने वाली धारा के अनुपात के विभवान्तर बराबर होता है।
सूत्र के रूप में,
प्रतिरोध = विभवान्तर / धारा
या R = V / I
R = (2m / ne2 τ ) L/A
यही चालक के प्रतिरोध का सूत्र है।
मात्रक–
S.I. पद्धति में प्रतिरोध का मात्रक ओम (ohm) है। इसे Ω से प्रदर्शित करते हैं।
सूत्र R= V / I में,
R = 1 वोल्ट / 1 ऐम्पियर = 1 ओम या 1 Ω
अत: यदि किसी चालक के सिरों के मध्य 1 वोल्ट का विभवान्तर लगाने पर उसमें बहने वाली धारा का मान 1 ऐम्पियर हो, तो उस चालक का प्रतिरोध 1 ओम होता है।
प्रतिरोध के बड़े मात्रक किलो ओम और मेगा ओम हैं।
1 किलो ओम = 103 ओम तथा 1 मेगा ओम = 106 ओम।
विमीय सूत्र –
सूत्र , R= V / I से ,
R = (W/q)/ I
R = W/ q×I
= W /I × t ×I
= W/I² t
R का विमीय सूत्र = [ML²T-²] / A²[T]
= [ML²T-³A-²]
अतः प्रतिरोध का विमीय सूत्र [ML²T-³A-² ] है।
प्रतिरोध की निर्भरता-
किसी धातु चालक के लिए प्रतिरोध का व्यंजक निम्न है –
R = (2m / ne2 τ ) L/A
m व e नियतांक हैं। अतः किसी चालक का प्रतिरोध L , A , n तथा τ पर निर्भर करता है।
(i) चालक की लम्बाई पर-
किसी चालक का प्रतिरोध R उसकी लम्बाई L के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् R ∝ L
इस प्रकार लम्बे तार का प्रतिरोध अधिक तथा छोटे तार का प्रतिरोध कम होता है।
(ii) चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर –
किसी चालक तार का प्रतिरोध R उस चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल A के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् R ∝ 1/ A.
इस प्रकार पतले तार का प्रतिरोध अधिक तथा मोटे तार का प्रतिरोध कम होता है।
(iii) चालक के पदार्थ की प्रकृति पर –
किसी चालक का प्रतिरोध R उसके प्रति एकांक आयतन में इलेक्ट्रॉनों की संख्या n के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् R ∝1/n का मान भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
अतः किसी चालक का प्रतिरोध, उसके पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
(iv) चालक के ताप पर-
किसी चालक का प्रतिरोध R श्रांतिकाल τ के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् R ∝1/τ •
चालक का ताप बढ़ाने पर मुक्त इलेक्ट्रॉन का अनुगमन वेग बढ़ जाता है, जिससे श्रांतिकाल घट जाता है।
अत: ताप बढ़ाने पर धातु चालकों का प्रतिरोध बढ़ जाता है।
वैद्युत चालकत्व (Electrical Conductance)-
किसी चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम को उसका वैद्युत् चालकत्व कहते हैं। इसे G से प्रदर्शित करते हैं।
सूत्र के रूप में,
वैद्युत चालकत्व =1 / प्रतिरोध
या G = 1 / R
मात्रक-
इसका मात्रक ओम-¹ है, जिसे म्हो (mho) कहते हैं तथा Ω-¹ भी लिखा जाता है।
आजकल वैद्युत चालकत्व विद्युत् चालकता के मात्रक को साइमन कहा जाता है, जिसे S से प्रदर्शित करते हैं।
इसकी विमीय सूत्र [M-¹L-²T³A²] है।
नोट –
R= V / I किसी चालक के प्रतिरोध का सामान्य सूत्र है, चाहे वह ओम के नियम का पालन करता हो, चाहे न करता हो।
परावैद्युत माध्यम (Dielectrics)