परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
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परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र –
यदि ताँबे के विद्युतरोधी तार की लंबी कुंडली बनाई जाए, तो इसे परिनालिका कहते हैं ।
सामान्यतः परिनालिका बनाने के लिए ऐस्बेस्टस , चीनी मिट्टी या अन्य विद्युतरोधी पदार्थ का बना खोखला बेलन लेते हैं ।
उस पर तांबे की विद्युतरोधी तार के बहुत से फेरे काफी पास पास लपेट देते हैं।
धारावाही परिनालिका –
प्रयोगों द्वारा देखा गया है कि जब किसी परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह एक दंड चुंबक की भांति व्यवहार करती है।
इसका एक सिरा उत्तरी ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की भांति व्यवहार करता है।
विद्युत धारा की दिशा बदलने पर सिरे की ध्रुवता (Polarity) भी बदल जाती है।
परिनालिका में चुंबकत्व उसी समय तक रहता है, जब तक कि उस में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है ।
विद्युत प्रवाह रोकने पर उसका चुंबकत्व समाप्त हो जाता है ।
परिनालिका के किसी सिरे की ध्रुवता नियम के अनुसार ज्ञात की जा सकती है –
किसी सिरे से देखने पर यदि परिनालिका में बहने वाले धारा की दिशा वामावर्त (Anti – clockwise) हो ,
तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव की भांति कार्य करेगा ,
किंतु यदि धारा की दिशा दक्षिणावर्त हो, तो वह सिर्फ दक्षिणी ध्रुव की भांति कार्य करता है ।
यदि विद्युतवाही परिनालिका को स्वतंत्रतापूर्वक लटका दिया जाए , तो वह दंड चुंबक की भांति सदैव उत्तर – दक्षिण दिशा में ठहरता है।
विद्युतवाही परिनालिका के चुंबकीय क्षेत्र को प्रदर्शित किया गया है।
स्पष्ट है कि विद्युतवाही परिनालिका का चुंबकीय क्षेत्र दंड चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के ही समान होता है।
परिनालिका के बाहर चुंबकीय बल रेखाएं उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर तथा उनके अंदर दक्षिणी ध्रुव से उतरी ध्रुव की ओर जाती है ।
दंड चुंबक और विद्युतवाही परिनालिका के चुंबकीय क्षेत्र में मुख्य अंतर यह होता है कि दंड चुंबक के सिरों पर चुंबकत्व अधिक तथा मध्य में न्यूनतम होता है।
जबकि परिनालिका के अंदर प्रत्येक बिंदु पर चुंबकत्व एक समान होता है , किंतु सिरों के पास ही चुंबकत्व थोड़ा सा कम होता है।
यदि परिनालिका के अंदर लोहे की छड़ डाल दी जाए , तो परिनालिका के चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता बढ़ जाती है।
दण्ड चुम्बक और धारावाही परिनालिका की तुलना –
समानता –
दण्ड चुम्बक –
1. यह चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
2. स्वतंत्रता पूर्वक लटकाने पर यह उत्तर दक्षिण दिशा में ठहरता है।
3. दण्ड चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं – उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव।
4. दण्ड चुम्बकों के सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण तथा विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है।
5. यह प्रेरण की क्रिया प्रदर्शित करता है।
धारावाही परिनालिका –
1. यह भी चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
2. इसे भी स्वतंत्रता पूर्वक लटकाने पर यह उत्तर दक्षिण दिशा में ठहरता है।
3. धारावाही परिनालिका के भी दो ध्रुव होते हैं।
4. धारावाही परिनालिका के भी सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण तथा विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है।
5. यह भी प्रेरण की क्रिया दर्शाती है।
असमानता
दण्ड चुम्बक –
1. दण्ड चुम्बक के सिरों पर चुम्बकत्व अधिकतम तथा मध्य में चुम्बकत्व न्यूनतम होता है।
2. इसके सिरों की ध्रुवता नियम रहती है।
3. इसका चुम्बकत्व स्थायी होता है।
धारावाही परिनालिका –
1. परिनालिका के अंदर प्रत्येक बिन्दु पर चुम्बकत्व एकसमान होता है , केवल सिरों के पास थोड़ा सा कम होता है।
2. इसके सिरों की ध्रुवता धारा प्रवाह की दिशा पर निर्भर करती है।
3. इसका चुम्बकत्व प्रवाहित धारा के मान पर निर्भर करता है। धारा का मान बढ़ाने पर चुम्बकत्व का मान भी बढ़ जाता है।