चुम्बकीय बल रेखाएं किसे कहते हैं
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चुम्बकीय बल रेखाएं किसे कहते हैं
चुंबकीय बल रेखाएं चुंबकीय बल रेखाओं की अवधारणा का उपयोग किसी स्थान में चुंबकीय क्षेत्र के ग्राफीय निरूपण के लिए किया जाता है
यदि कांच की एक प्लेट पर लोहे का बुरादा डालकर प्लेट के नीचे एक चुंबक रखें
और पेंसिल की सहायता से प्लेट को धीरे धीरे खटखटा ते जाएं
तो लोहे के कण कुछ वक्र रेखाओं में व्यवस्थित हो जाते हैं।
वास्तव में चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के कारण लोहे के कणों पर लगाने वाले बल के कारण ही कण वक्र रेखाओं में व्यवस्थित होते हैं।
इन वक्र रेखाओं को ही चुंबकीय बल रेखाएं कहते हैं
यदि किसी चुंबक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में एक उत्तरी ध्रुव की कल्पना करें तो उस पर दो बल कार्य करेंगे –
कार्य करने वाले बल –
(1). उत्तरी ध्रुव के कारण प्रतिकर्षण बल और
(2).दक्षिणी ध्रुव के कारण प्रति आकर्षण बल ।
अतः काल्पनिक उत्तरी ध्रुव परिणामी बल की दिशा में गति करेगा
और वक्राकार पथ में गति करता हुआ दक्षिण ध्रुव तक पहुंच जाएगा ।
इस वक्राकार पथ को ही चुंबकीय बल रेखा कहते हैं।
अतः चुंबकीय बल रेखा वह वक्राकार पथ है जिस पर एक स्वतंत्र एकांक उत्तरी ध्रुव गमन कर सकता है ।
क्योंकि चुम्बकीय क्षेत्र के किसी भी बिंदुओं पर स्वतंत्रता एकांक उतरी धुव प्रणामी बल की दिशा में गति करता है ,
अतः बल रेखा की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है –
किसी चुंबकीय क्षेत्र की रेखा वह वक्र है जिसके किसी भी बिंदु पर खींची गई
स्पर्श रेखा उस बिंदु पर प्रणामी चुंबकीय बल की दिशा को प्रदर्शित करती है।
चुंबक के पास विभिन्न बिंदुओं पर उत्तरी ध्रुव को रखने पर वह विभिन्न पथों का अनुसरण करता है ।
अतः चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या अनंत होती है ।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि वास्तव में चुंबकीय बल रेखाओं का कोई अस्तित्व नहीं है।
किंतु इसकी कल्पना से चुंबकीय क्षेत्र से संबंधित अनेक घटनाओं की व्याख्या की जा सकती है।
यह बल रेखाएं चुंबक के बाहर उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव की ओर जाती हुई मानी गई है
तथा चुम्बक के अंदर सरल रेखा में दक्षिण ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर जाती हुई मानी गई है।
गुण –
(1). ये रेखाएं चुम्बक के बाहर उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव तक तथा
चुम्बक के अंदर दक्षिण ध्रुव से उत्तरी ध्रुव तक जाती है अर्थात बंद वक्र बनाती है ।
(2). इन बल रेखाओं के किसी भी बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिंदु पर परिणामी क्षेत्र (बल) की दिशा को प्रदर्शित करती है ।
(3). दो बल रेखाएं एक दूसरे को कभी नहीं काटती है ।
यदि दो बल रेखाएं एक दूसरे को काटती हो , तो कटान बिंदु पर दोष स्पर्श रेखाएं खींची जा सकती है
अर्थात कटान बिंदु पर परिणामी बल (क्षेत्र) की 2 दिशाएं होंगी जो संभव नहीं है।
अतः दो बल एक दूसरे को नहीं काटती।
(4). यह रेखाएं जहां सघन होती है वहां चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक तथा जहां विरल होती है वहां चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है।
(5). यह बल रेखाएं खींची हुई डोरी के समान लंबाई में सिकुड़ने का प्रयास करती है ।
यही कारण है कि विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है।
चित्र में बल रेखाएं एक दूसरे के N ध्रुव से निकल रही है तथा दूसरे चुम्बक के S ध्रुव में प्रवेश कर रहे हैं ।
चूंकि बल रेखाएं लंबाई में सिकुड़ने का प्रयास करती है , अतः N ध्रुव S ध्रुव को अपनी ओर आकर्षित करती है ।
(6). यह रेखाएं एक दूसरे को लंबाई के लंबवत प्रतिकर्षित करती है यही कारण है कि सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है।
चित्र में X और Y दो समीपवर्ती बल रेखाएं हैं जो पृथक पृथक चुंबक के N ध्रुव से निकलती है।
यह बल रेखाएं लंबाई के लंबवत एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं।
फलस्वरूप N ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है। इसी प्रकार S ध्रुवों में भी प्रतिकर्षण होता है ।
ध्यान रहे कि चुंबकीय क्षेत्र में प्रति एकांक क्षेत्रफल से लम्बवत् गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता के बराबर होती है।
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