
Hindu code bill
Hindu code bill 1952 -56
पहले आम चुनाव से भी पहले संविधान सभा में हिन्दू समाज में महिलाओं के अधिकारों को स्थापित करने,
जातिवाद को कमजोर करने तथा देश भर में हिन्दुओं के परिवार और संपत्ति संबंधित कानूनों को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से एक व्यापक हिन्दू कोड बिल तैयार किया गया था।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसको तैयार करके संविधान सभा में पेश करने में अहम भूमिका निभायी थी।
प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी इसके समर्थन में थे मगर रूढ़ीवादी हिन्दुओं ने इसका कड़ा विरोध किया।
अतः पहले आम चुनाव के बाद इसे उठाने का निर्णय हुआ।
इससे दुखी होकर डॉ. अंबेडकर ने मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया था।
राजनैतिक रूप से गहरे मतभेद उत्पन्न करनेवाले इस बिल के बारे में और समझें।
अँग्रेजों के समय में पूरे देश के लिए अपराध (चोरी, हत्या आदि) संबंधित समान कानून लागू हुआ था
जिसे क्रिमिनल कोड कहते हैं लेकिन जहाँ तक शादी, परिवार, संपत्ति, बच्चे गोद लेने, जैसे मामलों पर लोगों के धर्म के आधार पर न्याय किया जाता था।
हर धर्म में इन विषयों पर अलग-अलग मान्यताएँ थीं।
अक्सर एक ही धर्म में अलग-अलग कानूनी व्यवस्थाएँ भी थीं।
सामान्यतया सभी धर्मों में ये नियम पितृसत्तात्मक और पुरुष प्रधान थे और महिलाओं को समान अधिकार नहीं देते थे।
हिन्दू समाज में उन्नीसवीं सदी से ही महिलाओं के अधिकारों के लिए व जातिप्रथा के विरूद्ध सुधार आंदोलन चल रहे थे।
स्वतंत्रता आंदोलन में भी काफी संख्या में महिलाओं व तथाकथित निम्न मानी गई जातियों की भागीदारी थी
और वे अपेक्षा कर रहे थे कि स्वतंत्रता मिलते ही उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए कानून बनाए जाएँगे।
इसी अपेक्षा को पूरा करने के लिए हिन्दू कोड बिल तैयार किया गया था।
हिन्दुओं के बीच प्रचलित विभिन्न कानूनों के एकीकरण के अलावा यह बिल हिन्दू समाज में कुछ महत्वपूर्ण सुधार लाना चाहता था।
इनमें महत्वपूर्ण प्रस्ताव निम्नानुसार थे :-
1. अगर परिवार के मुखिया की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हो जाती है तो उसकी संपत्ति में से उसकी पत्नि और पुत्रियों को पुत्रों के बराबर हिस्से मिलेंगे।
पहले केवल पुत्रों को संपत्ति मिलता था।
2. पति या पत्नि के जीवित रहते दूसरा विवाह करना अवैध ठहराया गया। पहले यह केवल महिलाओं पर लागू था।
3. पति व पत्नि दोनों को विशेष परिस्थितियों में तलाक मांगने का समान अधिकार।
4. अंतरजातीय विवाह को कानूनी मंजूरी।
5. किसी भी जाति के बच्चे को गोद लेना वैध।
परंपरावादी हिन्दुओं ने इन प्रावधानों का कड़ा विरोध यह कहते हुए किया कि यह हिन्दू धर्म से छेड़छाड़ है और यह हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देगा।
इनमें न केवल हिन्दू महासभा और जनसंघ जैसे परंपरावादी दल थे बल्कि काँग्रेस के शीर्षस्थ नेता जैसे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी शामिल थे।
इसके विरूद्ध सुधारवादी हिन्दुओं व महिला सांसदों का कहना था कि जातिवाद का खात्मा और महिला व पुरुषों में समानता लाए बिना समाज में न्याय और समानता के सिद्धांत स्थापित नहीं हो सकता है।
यह विवाद 1952 के आम चुनाव का एक प्रमुख मुद्दा बना और काँग्रेस के भारी जीत के चलते इस कानून का विरोध कमज़ोर हुआ।
कानून में भी कई बदलाव किए गए जिस कारण उनका विरोध कम हुआ।
इसे एक कानून की जगह चार अलग-अलग कानूनों के रूप में पारित किया गया।
देश में सामाजिक बदलाव लाने व महिलाओं को समान अधिकार दिलाने की दिशा में यह एक निर्णायक कदम था।
इस कानून के बहस के दौरान यह सवाल बार-बार उठा कि इस तरह का कानून केवल हिन्दुओं के लिए क्यों और सभी धर्मों के लिए क्यों नहीं?
डॉ. अंबेडकर और पं. नेहरू का कहना था कि अन्य धर्मों में सामाजिक सुधार आंदोलन के समर्थक उतने प्रबल नहीं थे
और विभाजन के बाद मुसलमान भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिन्तित थे।
ऐसे में उनपर यह नया कानून लागू करने से उनकी आशंकाओं को बल मिलेगा।
इसी कारण संविधान के नीति निदेशक तत्व में यह निर्देश रखा गया है कि ऊंची समय पर पूरे देश में समान वैयक्तिक कानून लागू किया जाए।