जमींदारी प्रथा

जमींदारी प्रथा का खात्मा 1949-56

जमींदारी प्रथा का खात्मा 1949-56

अँग्रेज़ शासनकाल में देश के अधिकांश भागों में जमींदारी प्रथा थी। हर क्षेत्र में इनके नाम अलग थे जैसे जमींदार, मालगुजार, गौटिया, जागीरदार, आदि।

वे शासन की ओर से किसानों से लगान इकट्ठा करते थे उन्हें जमीन का मालिक माना जाता था।

वे किसानों से मनमाने लगान वसूल करते थे और न देने पर उन्हें ज़मीन से बेदखल करते थे।

पूरे गाँव पर उनका दबदबा था और सबको उनके लिए बेगार करना पड़ता था।

स्वतंत्रता आंदोलन के समानान्तर पूरे देश में किसानों का आंदोलन चल रहा था। स्वतंत्रता के बाद राज्य सरकारों का पहला काम था ज़मींदारी का खात्मा।

लगभग हर राज्य में ज़मींदारी उन्मूलन, बेगारी समाप्ति और किसानों को भूमि वितरण संबंधी कानून बने।

हमने पिछले अध्याय में देखा था कि किस प्रकार ज़मींदारों ने कानूनी अड़चनें पैदा की और किस प्रकार संविधान के पहले संशोधन से उसका हल निकाला गया।

1956 तक पूरे देश में जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई और जमींदारों के जमीन का पुनर्वितरण शुरू हो चुका था।

इससे लगभग 200 लाख किसान परिवार लाभान्वित हुए और अपने जोत के मालिक बने।

ये प्रायः मध्यम दर्जे के किसान थे।

इस तरह के प्रयासों से मध्यम किसानों के हालात तो सुधरे मगर ज़मींदारों की ज़मीन पर अधिकार पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ।

वे कई हथकण्डे अपनाकर ज़मीन पर अपना अधिकार बचाने में सफल रहे।

गरीब किसान और भूमिहीन अभी भी जमीन से वंचित रहे।

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Author: educationallof

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