हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत

हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत (Heisenberg’s Uncertainty Principle ) –

हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत

इलेक्ट्रॉन में कण प्रकृति व तरंग दोनों पायी जाती है तथा किसी तरंग की वास्तविक स्थिति बताना अत्यन्त कठिन है क्योंकि तरंग किसी बिंदु पर स्थित नहीं रहती वरन् अंतरिक्ष में आगे बढ़ जाती है।

अतः इलेक्ट्रॉन में पायी जाने वाली तरंग प्रकृति, इलेक्ट्रॉन की सही स्थिति निर्धारित होने में बांधा डालती है। जर्मन भौतिक विज्ञानी वर्नर हाइजेनबर्ग ने इसी सीमा को अनिश्चितता सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया।

” किसी सूक्ष्म कण की स्थति व संवेग का एक साथ सही – सही निर्धारण असंभव है। “

गणितीय रुप में इसे निम्नानुसार व्यक्त किया जा सकता है-

    (∆x) ×(∆p) >= h/4π

या‌  (∆x) ×(m∆v) >= h/4π

जहां ∆x= स्थति में अनिश्चितता

 ∆p= संवेग में अनिश्चितता

∆v = वेग में अनिश्चितता

h = प्लाण्क स्थिरांक।

उपर्युक्त गणितीय सम्बन्ध से स्पष्ट है कि-

1. यदि ∆x का मान अत्यन्त कम हो –

इसका अर्थ यह है कि इलेक्ट्रॉन के समान सूक्ष्म कण की स्थिति ठीक ठीक पता कर ली जाती है तों संवेग में अनिश्चितता (∆p) का मान बढ़ जायेगा क्योंकि ∆x व ∆p दोनों का गुणनफल एक स्थिरांक हैं।

संवेग में अनिश्चितता का अर्थ वेग में अनिश्चितता से है क्योंकि द्रव्यमान तो ज्ञात किया जा सकता है।

2. यदि∆p का मान अत्यन्त कम है-

यदि संवेग का मान सही सही निर्धारित मान भी लें तो इसमें अनिश्चितता कम होने पर स्थिति में अनिश्चितता (∆x) बढ़ जायेगा।

3.यदि ∆x का मान शुन्य हो जाये –

यदि किन्हीं अवस्थाओं में ∆x ( स्थान में अनिश्चितता) का शून्य हो अर्थात् इसकी सही स्थिति निर्धारित कर ली जाये तो उस अवस्था में ∆p ( संवेग में अनिश्चितता) का मान अत्यन्त हों जायेगा।

अर्थात् इलेक्ट्रॉन जैसे सूक्ष्म कण की एक साथ सही स्थिति व संवेग का निर्धारण संभव नहीं है।

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