हाइगन का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत

हाइगन का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत (Huygen’s Theory of Secondary Wavelets) 

हाइगन का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत –

माध्यम में तरंग संचरण तथा तरंग का आगे बढ़ना समझाने के लिए हाइगन ने द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत प्रतिपादित किया।

इसके द्वारा हम ज्यामितीय विधि से यह ज्ञात कर सकते हैं कि किसी क्षण विशेष पर तरंगाग्र की स्थिति कहाँ पर होगी।

यह अग्रानुसार है –

1. तरंगाग्र का प्रत्येक बिन्दु तरंग स्त्रोत का कार्य करता है जिससे नई तरंगें उत्पन्न होती है।

इन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएँ कहते हैं।

2. द्वितीयक तरंगिकाएँ मूल तरंग के वेग से ही आगे बढ़ती है।

3. किसी भी क्षण इन द्वितीयक तरंगिकाओं पर बाहर की ओर खींचा गया अन्वालोप अर्थात् उन्हें स्पर्श करता हुआ पृष्ठ उस क्षण पर नये तरंगाग्र की स्थिति को प्रदर्शित करता है।

द्वितीयक तरंगाग्र का निर्माण

मानलो S एक बिन्दु प्रकाश स्त्रोत है। AB किसी क्षण पर उससे उत्पन्न गोलाकार तरंगाग्र का एक भाग है।

t समय पश्चात् इस तरंगाग्र की स्थिति क्या होगी , यह ज्ञात करना है।

हाइगन के अनुसार , तरंगाग्र AB का प्रत्येक बिन्दु तरंग स्त्रोत की भाँति कार्य करेगा। अतः इस तरंगाग्र AB पर कुछ बिन्दु P₁ , P₂ , P₃ , P₄ , ………लो।

इन बिन्दुओं से उत्पन्न तरंगिकाओं के द्वारा t समय में तय की गई दूरी =vt

जहाँ v तरंगिकाओं (अर्थात् तरंग ) का वेग है।

अतः P₁ , P₂ , P₃ , P₄ , ……को केन्द्र मानकर vt त्रिज्या के गोले खींचो।

इन गोलों पर बाहर की ओर खींचा गया अन्वालोप या आवरण A₁B₁ नवीन तरंगाग्र को प्रदर्शित करता है।

यह नवीन तरंगाग्र भी गोलाकार होगा।

इसी तरह चित्र में समतल तरंगाग्र का बनना प्रदर्शित किया गया है।

पूर्ववर्ती तरंगाग्र AB पर द्वितीयक तरंगिकाओं के जनक बिन्दु P₁ , P₂ , P₃ , P₄ ……लिये गये हैं तथा नवीन तरंगाग्र A₁B₂ का बनना प्रदर्शित किया गया है।

ध्यान रहे एक और अन्वालोप CD का निर्माण किया जा सकता है किन्तु यह किरणों के बढ़ने की विपरीत दिशा में है।

अतः इसे तरंगाग्र नहीं कहा जा सकता।

1.हाइगन के तरंग सिद्धांत के द्वारा परावर्तन की व्याख्या :-

मानलो XY एक परावर्ती पृष्ठ है , जिस पर एक समतल तरंगाग्र AB वेग c से चलकर आपतित होता है।

PA एक आपतित किरण है।

हाइगन के तरंग सिद्धांत द्वारा परावर्तन

मानलो समय t = 0 पर तरंगाग्र AB परावर्ती पृष्ठ XY को बिन्दु A पर स्पर्श करता है।

बिन्दु A से पृष्ठ XY पर AN लम्ब खींचो।

तब कोण PAN = i = आपतन कोण।

तरंगाग्र AB का प्रत्येक बिन्दु क्रमशः परावर्ती पृष्ठ XY को स्पर्श करता जायेगा।

सबसे अन्त में बिन्दु B पृष्ठ को B₁ पर स्पर्श करेगा।

मानलो बिन्दु B को B₁ तक आने में t समय लगता है।

तब BB₁ = ct (दूरी = वेग × समय) यदि तरंगाग्र के मार्ग में परावर्ती पृष्ठ XY नहीं होता तो हाइगन के सिद्धांत के अनुसार तरंगाग्र की स्थिति A₁B₁ होती।

तब AA₁ =ct होता।

परावर्ती पृष्ठ की उपस्थिति के कारण जैसे ही तरंगाग्र पृष्ठ के बिन्दु A को स्पर्श करता है , बिन्दु A से द्वितीयक तरंगिका उत्पन्न होती है जो t समय में AQ = ct दूरी तय कर लेता है।

बिन्दु A को केन्द्र लेकर ct त्रिज्या का एक गोला खींचो तथा बिन्दु B₁ से इस गोले पर स्पर्श तल B₁Q खींचो जो इस गोले को बिन्दु Q पर स्पर्श करता है।

तब B₁Q परावर्तित तरंगाग्र को प्रदर्शित करेगा।

परावर्तित तरंगाग्र का परीक्षण :-

B₁Q परावर्तित तरंगाग्र को प्रदर्शित करता है , इसके परीक्षण के लिए तरंगाग्र AB पर एक बिन्दु C लो तथा BB₁ के समान्तर।

CC₁ रेखा खींचो जो XY को बिन्दु D पर काटती है।

बिन्दु D से B₁Q के लम्बवत् रेखा DD₁ खींचो।

∆B₁AQ तथा ∆B₁DD₁ समरुप हैं।

AQ / DD₁ = AB₁ / DB₁ ……..(1)

इसी प्रकार ∆B₁AA₁ तथा ∆B₁DC₁ समरूप है।

AB₁/DB₁ = AA₁/DC₁ ……..(2)

समीकरण (1) और (2) से ,

AQ/DD₁ = AA₁/ DC₁

या ct/DD₁ = ct/DC₁ , (AQ=AA₁=ct)

चूँकि DD₁ = DC₁ = बिन्दु D से निकलने वाली द्वितीयक तरंगिका की त्रिज्या।

अतः बिन्दु D से निकलने वाली द्वितीयक तरंगिका B₁Q को स्पर्श करेगी।

यह AB₁ के मध्य स्थित प्रत्येक बिन्दु के लिए सत्य है।

अतः B₁Q परावर्तित तरंगाग्र है।

परावर्तन के नियमों की स्थापना :-

AQ परावर्तित तरंगाग्र B₁Q के लम्बवत् है।

अतः AQ परावर्तित किरण होगी।

इस प्रकार कोण QAN = r = परावर्तन कोण।

अब आपतन कोण i = PAN = 90° – BAN = BAB₁

तथा परावर्तन कोण r = QAN = 90° -QAB₁ = AB₁Q

समकोण ∆ ABB₁ में ,

Sin I = sin BAB₁ = BB₁/AB₁ = ct/ AB (BB₁=ct)

अतः ct = AB₁ sin i …….(3)

इसी प्रकार समकोण ∆AQB₁ में ,

Sin r = sin AB₁Q = AQ /AB₁ = ct / AB₁ (AQ = ct)

अतः ct = AB₁ Sin r …..(4)

समीकरण (3) और (4) से ,

AB₁ sin i = AB₁ sin ri = r

अतः आपतन कोण , परावर्तन कोण के बराबर होता है।

चित्र से स्पष्ट है कि आपतित किरण , परावर्तित किरण और अभिलम्ब एक ही तल (कागज के तल) में हैं।

ये ही परावर्तन के नियम हैं।

हाइगन के तरंग सिद्धांत के द्वारा अपवर्तन की व्याख्या –

मानलो XY एक अपवर्तक पृष्ठ है जो माध्यम II को पृथक्कत करता है।

AB एक समतल तरंगाग्र है जो पहले माध्यम में वेग c₁ से चलकर पृष्ठ पर आपतित होता है।

PA एक आपतित किरण है।

हाइगन के तरंग सिद्धांत द्वारा अपवर्तन

मानलो समय t = 0 पर तरंगाग्र AB पृष्ठ XY को बिन्दु A पर स्पर्श करता है।

बिन्दु A से पृष्ठ XY पर AN लम्ब खींचो।

तब कोण PAN = i = आपतन कोण।

तरंगाग्र AB का प्रत्येक बिन्दु क्रमशः अपवर्तक पृष्ठ XY को स्पर्श करता जायेगा।

सबसे अन्त में बिन्दु B पृष्ठ को बिन्दु B₁ पर स्पर्श करेगा।

मानलो बिन्दु B को बिन्दु B₁ तक आने में t समय लगता है।

तब BB₁ = c₁t यदि तरंगाग्र के मार्ग में XY पृष्ठ नहीं होता तो हाइगन के सिद्धांत के अनुसार तरंगाग्र की स्थिति A₁B₁ होती।

स्पष्ट AA₁ =BB₁ = c₁t .

अपवर्तक पृष्ठ की उपस्थिति के कारण जैसे ही तरंगाग्र पृष्ठ को बिन्दु A पर स्पर्श करता है , बिन्दु B से द्वितीयक तरंगिका उत्पन्न होती है जो माध्यम II में वेग c₂ से चलती है।

t.समय में यह तरंगिका माध्यम II में AQ = c₂t दूरी तय कर लेती है।

A को केन्द्र लेकर AQ = c₂t = c₂/c₁ .AA₁ त्रिज्या का एक गोला खींचो तथा बिन्दु B₁ से इस गोले पर स्पर्श तल B₁Q खींचो , जो इस गोले को Q पर स्पर्श करता है।

तब B₁Q अपवर्तित तरंगाग्र को प्रदर्शित करेगा।

अपवर्तित तरंगाग्र का परीक्षण :-

तरंगाग्र AB पर कोई बिन्दु C से BB₁ के समान्तर CC₁ रेखा खींचो , जो पृष्ठ XY को बिन्दु D पर प्रतिच्छेद करती है।

बिन्दु D से B₁Q के लम्बवत् रेखा DD₁ खींचो।

∆B₁AQ और ∆B₁DD₁ समरूप हैं।

AQ / DD₁ = AB₁ /DB₁ …….(1)

इसी प्रकार ∆B₁AA₁ तथा ∆B₁DC₁ समरूप हैं।

AB₁ /DB₁ = AA₁/DC₁ ………(2)

समीकरण (1) और (2) से ,

AQ /DD₁ = AA₁/DC₁

c₂t/DD₁ = c₁t/DC₁

DD₁ =c₂/c₁ . DC₁

स्पष्ट है कि DD₁ बिन्दु D से माध्यम II में चलने तरंगिका की त्रिज्या है।

अतः बिन्दु D से निकलने वाली द्वितीयक तरंगिका B₁Q को स्पर्श करेगी।

यह AB₁ के बीच स्थित प्रत्येक बिन्दु के लिए सत्य है।

अतः B₁Q अपवर्तित तरंगाग्र है।

अपवर्तन के नियमों की स्थापना :-

AQ अपवर्तित तरंगाग्र B₁Q के लम्बवत् है।

अतः AQ अपवर्तित किरण होगी।

इस प्रकार कोण QAN’ = r= अपवर्तन कोण

अब आपतन कोण i = PAN = 90° – NAB = BAB₁

तथा अपवर्तन कोण r = QAN’ = 90° – QAB₁ = AB₁Q

अब समकोण ∆ABB₁ में ,

Sin i = sin BAB₁ = BB₁/AB₁ = c₁t / AB₁ ….(1)

इसी प्रकार समकोण ∆AQB₁ में ,

Sin r =sin AB₁Q = AQ/AB₁ = c₂t/AB₁

समीकरण (1) और (2) से ,

Sin i /sin r = c₁/c₂ = नियतांक

यह स्नेल का नियम है।

पुनः चित्र से स्पष्ट है कि आपतित किरण , अपवर्तित किरण तथा अभिलम्ब तीनों एक ही तल (कागज के तल ) में स्थित हैं।

ये ही अपवर्तन के नियम है।

तरंग -सिद्धांत की कमियाँ :-

1. इस सिद्धांत की सहायता से प्रकाश-विद्युत् प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकती।

2.हाइगन के तरंग सिद्धांत के अनुसार , पूरे ब्रम्हांड में ईथर माध्यम व्याप्त है , किन्तु प्रयोगों द्वारा इस काल्पनिक माध्यम की पुष्टि नहीं हो सकी है।

तरंगों के अध्यारोपण का सिध्दांत :-

जब कोई तरंग किसी माध्यम में गमन करती है तो माध्यम का प्रत्येक कण गति करने लगता है।

किन्तु जब दो या दो से अधिक तरंगें माध्यम के किसी बिन्दु पर एक साथ पहुँचती हैं तो प्रत्येक तरंग उस बिन्दु पर स्थित कण को अपने अनुसार विस्थापित करना चाहती है।

फलस्वरूप उस कण का परिणामी विस्थापन प्रत्येक तरंग के कारण विस्थापन के सदिश योग के बराबर होता है।

इसे अध्यारोपण का सिध्दांत कहते हैं।

इस सिद्धांत के अनुसार ,

जब दो या दो से अधिक तरंगें माध्यम के किसी बिन्दु पर एक साथ पहुँचती हैं तो परिणामी विस्थापन उन तरंगों द्वारा उत्पन्न अलग अलग विस्थापनों के सदिश योग के बराबर होता है।

यदि n तरंगें किसी बिन्दु पर एक साथ पहुँचती हैं तथा प्रत्येक तरंग के कारण उस बिन्दु का विस्थापन क्रमशः y₁ , y₂ , y₃ , ……. हो तो अध्यारोपण के सिध्दांत से उस बिन्दु का परिणामी विस्थापन :

y = y₁ + y₂ + y₃ + …..

इस सिध्दांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम हाइगन ने किया था।

यह सिध्दांत अनुप्रस्थ तरंगों (Transverse Waves) और अनुदैर्ध्य तरंगों (Longitudinal Waves) दोनों के लिए समान रूप से सत्य है ,

किन्तु बड़े आयाम की तरंगों ( जैसे – भूकम्प या विस्फोट के समय उत्पन्न तरंगें , लेसर किरणें आदि ) के लिए यह लागू नहीं होता।

यदि y₁, y₂, y₃ की दिशाएँ समान हैं तो

y = y₁ + y₂ + y₃ + ……..

दर्शन कोण किसे कहते हैं ?

सूक्ष्मदर्शी (Microscope) किसे कहते हैं ?

विभेदन क्षमता किसे कहते हैं ?

न्यूटन का कणिका सिद्धांत –

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Author: educationallof

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