
स्वप्रेरण किसे कहते हैं
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जानिए , स्वप्रेरण किसे कहते हैं
स्वप्रेरण (Self Induction)
जब किसी कुण्डली में एकाएक धारा प्रवाहित की जाती है, तो उससे बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में एकाएक वृद्धि होती है।
अतः कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है जो लेंज के नियमानुसार मुख्य धारा के विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है
ताकि मुख्य धारा का मान न बढ़ सके।
इसके विपरीत जब विद्युत् धारा के प्रवाह को रोका जाता है, तो उस कुण्डली से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या में एकाएक कमी होती है।
अतः कुण्डली में पुनः विद्युत् धारा प्रेरित हो जाती है।
लेंज के नियमानुसार प्रेरित धारा, मुख्य धारा की दिशा में ही प्रवाहित होती है ताकि मुख्य धारा का मान कम न हो सके।
इस प्रकार, जब किसी कुण्डली में बहने वाली विद्युत् धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है, तो उस कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है।
फलस्वरूप उसी कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है। इस घटना को स्वप्रेरण कहते हैं।
विद्युत् धारा के मान को बढ़ाने पर प्रेरित मुख्य धारा के विपरीत दिशा में और मुख्य धारा के मान को कम करने पर उसी दिशा में प्रवाहित होती है।
प्रायोगिक प्रदर्शन –
स्वप्रेरण को प्रयोग द्वारा प्रदर्शित करने के लिए चित्र की भाँति विद्युत् परिपथ तैयार करते हैं,
जिसमें L एक कुण्डली है जो मुलायम लोहे के टुकड़े पर ताँबे के विद्युत्ररोधी तार को लपेटकर बनायी जाती है।
कुण्डली के साथ श्रेणी क्रम में एक सेल E, परिवर्ती प्रतिरोध Rh तथा दाब कुंजी K जोड़ देते हैं।
इसके अतिरिक्त कुण्डली L के साथ समान्तर क्रम में एक बल्ब B जोड़ देते हैं।
दाब कुंजी K को दबाने पर बल्च B मन्द प्रकाश से जलने लगता है।
जब दाब कुंजी को हटा देते हैं तो व कुछ क्षण के लिए तेज प्रकाश से जलकर बुझ जाता है।
ऐसा स्वप्रेरण के कारण होता है।
जब विद्युत् परिपथ को भंग करते हैं तो कुण्डली L से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में एकाएक कमी होती है।
अतः उसमें मुख्य धारा की से दिशा में ही प्रबल प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है, जिससे बल्ब कुछ क्षण के लिए तेज प्रकाश से जलता है और फिर बुझ जाता है।
यही कारण है कि कभी-कभी स्विच को एकाएक बंद करने पर जलता हुआ बल्ब फ्यूज हो जाता है।
स्वप्रेरकत्व या स्वप्रेरण गुणांक (Self Inductance or Co-efficient of Self Indue tion)
जब किसी कुण्डली में धारा प्रवाहित की जाती है, तो कुण्डली के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है,
जिससे उसी कुण्डली से होकर बल रेखाएँ (चुम्बकीय फ्लक्स) गुजरने लगती हैं।
कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है।
यदि किसी कुण्डली में धारा I प्रवाहित करने पर उससे बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स Φ हो, तो
Φ∝ I या Φ = LI. ……(1)
जहाँ L एक नियतांक है, जिसका मान कुण्डली के आकार, आकृति, माध्यम तथा उसमें फेरों की संख्या पर निर्भर करता है।
इसे उस कुण्डली का स्वप्रेरकत्व या स्वप्रेरण गुणांक कहते हैं।
यदि । = 1 हो, तो समीकरण (1) से, Φ = L
अतः किसी कुण्डली का स्वप्रेरकत्व आंकिक रूप से कुण्डली से बद्ध उस चुम्बकीय फ्लक्स के बराबर होता है,
जो कुण्डली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न होता है।
अब यदि कुण्डली में बहने वाली धारा में परिवर्तन किया जाये तो उससे बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में भी परिवर्तन होगा ।
अतः फैराडे के विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के द्वितीय नियम से,
e = -dΦ /dt = – d (LI)/dt
e = – L d I/dt ……(2)
ऋण चिन्ह प्रेरित वि. वा. बल के विरोधी प्रकृति का प्रतीक है।
समीकरण (2) में, यदि dl / dt = 1 हो, तो e =- L
अत: किसी कुण्डली का स्वप्रेरकत्व आंकिक रूप से उस वि. वा. बल के बराबर होता है,
जो उस कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर इकाई होने पर उत्पन्न होता है।
मात्रक-
S. I. पद्धति में स्वप्रेरकत्व का मात्रक हेनरी (henry) है। इसका संकेत H है।
(i) समीकरण (1) से,
L = Φ/I
सूत्र में यदि Φ= 1 वेबर तथा I = 1 ऐम्पियर हो, तो
L = 1 वेबर /1 ऐम्पियर =1 हेनरी
अत: यदि किसी कुण्डली में 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करने पर उससे बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स का मान 1 वेबर हो,
तो उस कुण्डली का स्वप्रेरकत्व 1 हेनरी होता है।
(ii) समीकरण (2) से,
L= e/dI /dt
(ऋण चिन्ह को छोड़ने पर)
इस सूत्र में यदि e =1 वोल्ट तथा dl /dt =1 ऐम्पियर/सेकण्ड हो, तो
L= 1वोल्ट / ऐम्पियर/सेकण्ड = 1 हेनरी
अत: यदि किसी कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर 1 ऐम्पियर प्रति सेकण्ड होने पर उसमें उत्पन्न वि. वा. बल का मान 1 वोल्ट हो,
तो उस कुण्डली का स्वप्रेरकत्व 1 हेनरी होता है।
हेनरी बड़ा मात्रक है।
अत: उसके स्थान पर छोटे मात्रक मिली हेनरी या माइक्रो हेनरी का प्रयोग करते हैं।
1 मिली हेनरी (mH) = 10-3 हेनरी (H)
1 माइक्रो हेनरी (μH) = 10-6 हेनरी (H)
विमाएँ-
सूत्र e = L dI/dt से,
अतः L का विमीय सूत्र = [ML2T-2/AT]/[A / T]
=[ML2T-2] [T] / [A2T]
= [ML2T-2A-2]
नोट-
(i) L स्वप्रेरकत्व वाली कुण्डली में धारा प्रवाहित करने पर उसमें संचित चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा
U = 1/2 LI²
(ii) एक कुण्डली को जिसके फेरे पास-पास तथा दृढ़ होते हैं, प्रेरक कुण्डली (Inductor) कहते हैं।
इसका स्वप्रेरकत्व उच्च तथा ओमीय प्रतिरोध शून्य होता है। ( स्वप्रेरण किसे कहते हैं )
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