सूक्ष्मदर्शी (Microscope) किसे कहते हैं ?

सूक्ष्मदर्शी Microscope

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सूक्ष्मदर्शी Microscope –

परिभाषा –

“सूक्ष्मदर्शी एक ऐसा उपकरण हैं , जिसकी सहायता से पास रखी सूक्ष्म वस्तुओं को आवर्धित रूप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।”

सिद्धांत –

सूक्ष्मदर्शी में उपयुक्त लेंस या लेंसों की सहायता से सूक्ष्म वस्तु का बड़ा प्रतिबिम्ब बनाता है , जिससे प्रतिबिम्ब द्वारा नेत्र पर निर्मित दर्शन-कोण का मान बढ़ जाता है।

अतः वस्तु बड़ी दिखाई देने लगती है।

आवर्धन – क्षमता (Magnifying Power) –

प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण और स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर स्थित वस्तु द्वारा निर्मित दर्शकों कोण के अनुपात को सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन – क्षमता कहते हैं।

सूत्र रूप में ,

आवर्धन-क्षमता = प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन-कोण / स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर स्थित वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन-कोण

प्रतिबिम्ब कहाँ पर बना रहा है , इस दृष्टि से सूक्ष्मदर्शी का उपयोग दो प्रकार से किया जा सकता है –

(1). जब प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने – इस स्थिति में आवर्धन-क्षमता अधिक होती है।

(2). जब प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने – इस स्थिति में आवर्धन-क्षमता कम होती है , किन्तु नेत्र श्रांत अवस्था (Relaxed state) में होता है।

इस स्थिति में नेत्र पर कोई जोर नहीं पड़ता।

सूक्ष्मदर्शी के प्रकार –

सूक्ष्मदर्शी दो प्रकार के होते हैं –

(1). सरल सूक्ष्मदर्शी

(2). संयुक्त सूक्ष्मदर्शी।

【 नोट :-आवर्धन-क्षमता को कोणीय आवर्धन (Angular Magnification). भी कहते हैं। 】

सरल सूक्ष्मदर्शी (Simple Microscope)

कम फोकस दूरी वाला अकेला उत्तल लेंस सरल सूक्ष्मदर्शी की भाँति कार्य करता है।

इसका उपयोग आवर्धक लेंस या रीडिंग लेंस की तरह किया जाता है।

बनावट –

कम फोकस दूरी वाला एक उत्तल लेंस हैण्डिल युक्त एक फ्रेम में कसा होता है

सिद्धांत –

यदि कोई वस्तु उत्तल लेंस के प्रकाश केन्द्र और फोकस के बीच स्थित हो , तो लेंस द्वारा उसका प्रतिबिम्ब आभासी , सीधा और वस्तु से बड़ा बनता है।

प्रतिबिम्ब का बनना –

जिस वस्तु AB को देखना है , उसे उत्तल लेंस L के सम्मुख उसके फोकस और प्रकाश केन्द्र के बीच रखा जाता है

सरल सूक्ष्मदर्शी द्वारा वस्तु का प्रतिबिंब बनना

तथा AB की दूरी को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि उसका सीधा , आभासी और आवर्धित प्रतिबिम्ब A’B’ स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने।

यदि नेत्र , लेंस के पास हो , तो लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी के बराबर होगी।

लेंस को हटाने पर वस्तु स्पष्ट दिखायी नहीं देगी , क्योंकि वह स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी से कम दूरी पर है।

वस्तु को बिना लेंस के स्पष्ट देखने के लिए उसे स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर A”B’ की स्थिति में रखना होगा।

इस स्थिति में वस्तु छोटी दिखायी देगी क्योंकि उसके द्वारा निर्मित दर्शन कोणα , प्रतिबिम्ब A’B’ द्वारा निर्मित दर्शन कोण β से कम है , जो लेंस के उपयोग से प्रतिबिम्ब वस्तु से बड़ा दिखाई देता है।

सरल सूक्ष्मदर्शी द्वारा अनन्त पर वस्तु का प्रतिबिंब बनना

जब वस्तु को लेंस के फोकस पर रखा जाता है तो उसका प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है।

आवर्धन क्षमता (Magnifying Power) –

प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण और स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर स्थित वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण के अनुपात को सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता कहते हैं।

सूत्र रूप में ,

आवर्धन क्षमता m = प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण / स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर स्थित वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण

m = β/α

चूँकि α और β के मान अत्यंत कम होते हैं , अतः α = tan α तथा β = tan β ले सकते हैं।

m = tan β / tan α ……(1)

चित्र 1. और 2. से ,

tan β = AB /OB

तथा tan α = A”B” /D = AB/D (क्योंकिA”B”=AB )

[ वस्तु नेत्र से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर स्थित है। ]

समीकरण (1) में tan α और tan β के मान रखने पर ,

m = (AB / OB ) / (AB/D)

m = AB / OB × D/AB = D/ u

चिन्ह परिपाटी के अनुसार D ऋणात्मक होगा

तथा OB = – u m = -D/-u

या m = D/u ………(2)

स्थिति I -जब प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने –

इस स्थिति में v = -D , चिन्ह परिपाटी के अनुसार u का चिन्ह ऋणात्मक तथा f चिन्ह धनात्मक (उत्तल लेंस) होगा।

अतः सूत्र 1/f = 1/v – 1/u से ,

1/f = 1/-D – 1/-u

या 1/f = -1/D + 1/u

या D/f = -1+D/u

(दोनों पक्षों में D का गुणा करने पर )

या 1 + D/f = D/f = D/u

समीकरण (2) में मान रखने पर ,

m = 1 + D/f ………(3)

स्थिति II. जब प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने –

इस स्थिति में u = f समीकरण (2) में रखने पर ,

m = D/f …..(4)

अधिक आवर्धन क्षमता के लिए शर्त –

समीकरण (3) और (4) से स्पष्ट है कि अधिक आवर्धन क्षमता के लिए लेंस की फोकस दूरी कम होनी चाहिए।

दोष –

इसकी आवर्धन क्षमता कम होती है।

उपयोग –

1. घड़ीसाजों द्वारा घड़ी के छोटे पुर्जों को देखने में ,

2. स्लाइडों को देखने में ,

3. यन्त्रों में लगे वर्नियर स्केलों को पढ़ने में आदि।

नोट –

1. यदि नेत्र को लेंस से a दूरी पर रखा जाता है , तो समीकरण (3) और (4) के स्थान पर D-a लिखना होगा।

m = 1 + D-a / f तथा m = D-a / f

अतः अधिक आवर्धन क्षमता के लिए a का मान शून्य होना चाहिए अर्थात् नेत्र को लेंस के पास ही होना चाहिए।

2. किसी लेंस की फोकस दूरी बैंगनी रंग के लिए न्यूनतम एवं लाल रंग के लिए अधिकतम होती है।

अतः सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता बैंगनी रंग के लिए अधिक एवं लाल रंग के लिए कम होती है।

3. ऊपर बताया जा चुका है कि सरल सूक्ष्मदर्शी की अधिक आवर्धन क्षमता के लिए लेंस की फोकस दूरी कम होनी चाहिए।

किन्तु लेंस की फोकस दूरी कम करने पर उसकी मोटाई बढ़ जाती है , जिससे उसमें कई दोष उत्पन्न हो जाते हैं।

अतः सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता सीमित होती है।

4. सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता धनात्मक है। अतः प्रतिबिम्ब सीधा बनता है।

5. आंकिक प्रश्न हल करते समय समीकरण (3) और (4) में D और f के केवल आंकिक मान ही रखने चाहिए। ]

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope)

सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता लेंस की फोकस दूरी को कम करके बढ़ायी जा सकती है , किन्तु लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित सीमा से कम नहीं की जा सकती।

अतः सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता सीमित होती है।

आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए दो अलग अलग लेंसों से बने सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते हैं , जिसे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी कहते हैं।

बनावट –

इसमें धातु की बनी दो समाक्ष नलियाँ होती हैं। एक नली के अन्दर दूसरी नली को रैक पिनियन व्यवस्था द्वारा चलाया जा सकता है।

प्रत्येक नली के बाह्य सिरे पर एक एक उत्तल लेंस लगा होता है।

प्रत्येक लेंस कई लेंसों से मिलकर बना होता है ताकि वर्ण विपथन और गोलीय विपथन उत्पन्न न हो।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का किरण पथ

जो लेंस वस्तु की ओर रहता है , उसे अभिदृश्यक (Objective) तथा जो लेंस नेत्र की ओर रहता है , उसे नेत्रिका (Eye-piece) कहते हैं।

अभिदृश्यक का मुख्य व्यास तथा फोकस दूरी , नेत्रिका के मुख्य व्यास तथा फोकस दूरी से कम होती है।

नेत्रिका वाली नली में नेत्रिका के सामने दो लम्बवत् तार जिन्हें क्रॉस तार कहते हैं , लगे रहते हैं।

नेत्रिका को हाथ से पकड़कर नेत्रिका वाली नली में अन्दर बाहर किया जा सकता है।

अभिदृश्यक से बना प्रतिबिम्ब इन्हीं क्रॉस तार पर बनता है।

प्रयोग विधि –

सर्वप्रथम नेत्रिका को हाथ से पकड़कर नेत्रिका वाली नली में इतना चलाते हैं कि क्रॉस तार स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे।

अब वस्तु को अभिदृश्यक के सामने रखते हैं तथा रैक पिनियन व्ववस्था द्वारा नेत्रिका वाली नली को अभिदृश्यक वाली नली में इतना चलाते हैं

कि वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब क्रॉस तार पर बन जाये तथा प्रतिबिम्ब और क्रॉस तार के बीच कोई लम्बन न रहे।

प्रतिबिम्ब का बनना –

जिस वस्तु AB को देखना होता है , उसे अभिदृश्यक O के फोकस से कुछ बाहर रखते हैं।

अभिदृश्यक O द्वारा वस्तु AB का उल्टा , वास्तविक और आवर्धित प्रतिबिम्ब A’B’ बनता है।

नेत्रिका E की दूरी इस प्रकार समंजित करते हैं कि यह प्रतिबिम्ब उसके फोकस व प्रकाश केन्द्र के बीच बने।

A’B’ नेत्रिका E के लिए वस्तु का कार्य करता है , जिसका अन्तिम प्रतिबिम्ब PQ नेत्रिका से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है।

सीधा प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए वस्तु या स्लाइड को प्रायः उल्टा रखते हैं।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का किरण पथ

यदि प्रतिबिम्ब A’B’ नेत्रिका E के फोकस पर बने तो अन्तिम प्रतिबिम्ब नेत्रिका से अनन्त दूरी पर बनता है।

आवर्धन क्षमता –

अन्तिम प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण और स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर रखी वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण के अनुपात को संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता कहते हैं।

सूत्र रूप में ,

आवर्धन क्षमता = अन्तिम प्रतिबिम्ब द्वारा निर्मित दर्शन कोण / स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर रखी पर वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण

या m = β/α

चूँकि α और β के मान बहुत कम होते हैं ,

अतःα = tan α तथा β = tan β ले सकते हैं।

m = tan β / tan α …..(1)

चित्र 1, 2 से ,

tan β = A’B’ / EB’

वस्तु द्वारा निर्मित दर्शन कोण

चित्र 3. में वस्तु नेत्र से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर स्थित है।

tan α = AB/Dसमीकरण (1) में मान रखने पर ,

m = (A’B’/EB’) / ( AB/D)

m = A’B’/AB × D/EB’ …..(2)

अब ∆A’OB’ तथा ∆AOB समरूप हैं ,

A’B’/AB = OB’/OB

समीकरण (2) में मान रखने पर ,

m = OB’/OB × D/EB’ …..(3)

परन्तु OB = –u₀= अभिदृश्यक से वस्तु की दूरी

OB’ = v₀= अभिदृश्यक से प्रतिबिम्ब A’B’ की दूरी

EB’ = –ue= नेत्रिका से A’B’ (नेत्रिका के लिए वस्तु की दूरी)

चिन्ह परिपाटी से D का चिन्ह ऋणात्मक होगा।

m = v₀/-u₀ × –D/-ue

या m = -v₀/u₀ × D/ue …..(4)

स्थिति I जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने –

मानलो नेत्रिका की फोकस दूरी fe है ,

तब नेत्रिका के लिए u = -ue तथा v = – D

अतः लेंस के सामान्य सूत्र 1/f = 1/v – 1/u से ,

1/fe = 1/-D – 1/-ue

या 1/fe = -1/D + 1/ue

1/ue = 1/fe + 1/D

या D/ue = 1 + D/fe ,

(दोनों पक्षों में D का गुणा करने पर )

समीकरण (4) में मान रखने पर ,

m = -v₀/u₀ ( 1 + D/fe )…..(5)

इस स्थिति में सूक्ष्मदर्शी की नली की लम्बाई = v₀+ue

स्थिति II . जब अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने –

यदि प्रतिबिम्ब A’B’ नेत्रिकाE के फोकस पर बनता है , तो अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनेगा।

इस स्थिति में ue = fe

समीकरण (4) में मान रखने पर ,

m = v₀/u₀ .D/fe ….(6)

इस स्थिति में सूक्ष्मदर्शी की नली की लम्बाई = v₀ + fe .

अधिक आवर्धन क्षमता के लिए शर्तें –

समीकरण (5) और (6) से स्पष्ट है कि सूक्ष्मदर्शी की अधिक आवर्धन क्षमता के लिए –

1. u₀ का मान कम होना चाहिए अर्थात् वस्तु को अभिदृश्यक के नजदीक रखना चाहिए , किन्तु वस्तु को अभिदृश्यक के फोकस के बाहर रखा जाता है।

अतः अभिदृश्यक की फोकस दूरी कम होनी चाहिए।

2. fe का मान कम होना चाहिए अर्थात् नेत्रिका की फोकस दूरी कम होनी चाहिए।

3. v₀का मान अधिक होना चाहिए इसके लिए वस्तु AB को अभिदृश्यक लेंस O के फोकस के समीप रखना चाहिए।

चूँकि अभिदृश्यक द्वारा वस्तु का बना प्रतिबिम्ब वास्तविक होता है। v₀का मान अधिक होने का अर्थ हैकि सूक्ष्मदर्शी नली की लम्बाई अधिक होनी चाहिए।

ध्यान रहे कि अभिदृश्यक की फोकस दूरी को नेत्रिका की फओकस दूरी से कम होना चाहिए ताकि वस्तु को अभिदृश्यक केबाहर रखकर अधिक आवर्धन क्षमता प्राप्त की जा सके।

नोट –

1. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता ऋणात्मक होती है अतः अन्तिम प्रतिबिम्ब वस्तु केसापेक्ष उल्टा बनता है

2. अभिदृश्यक की आवर्धन क्षमता m₀ = -v₀/u₀ , नेत्रिका सरल सूक्ष्मदर्शी की तरह कार्य करती है।

अतः नेत्रिका की आवर्धन क्षमता

me= 1 + D/fe

अतः समीकरण (5) और (6) से ,

m = mo × me

शब्दों में ,

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता = अभिदृश्यक की आवर्धन क्षमता × नेत्रिका की आवर्धन क्षमता

3. अभिदृश्यक का मुख्य व्यास (द्वारक) छोटा होताहै , ताकि वस्तु से आने वाला प्रकाश कम क्षेत्रमें फैले और प्रतिबिम्ब तीव्र बने।

4.संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता अभिदृश्यक और नेत्रिका की फोकस दूरियों पर निर्भर करती है

अतः ऐसासोचा जा सकताहै उचित फोकस दूरियों के लेंसों का उपयोग करके किसी भी वांछित आवर्धन को प्राप्त किया जा सकता है।

किन्तु व्यवहार में ऐसा सम्भव नहीं है , क्योंकि एक निश्चित सीमा से अधिक आवर्धन क्षमता को बढ़ा देने पर प्रतिबिम्बमें वस्तु के विवरण स्पष्ट नहीं हो पाते |

सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता (Resolving Power of Microscope) –

सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता का निर्धारण दो बिन्दुओं के बीच की उस न्यूनतम दूरी से किया जाता है , जिससे वे वस्तुएं सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने पर अलग अलग दिखाई दे सकें।

ऐबी (Abbe) के अनुसार , सूक्ष्मदर्शी द्वारा विभेदित की जा सकने वाली दो बिन्दुओं के बीच की न्यूनतम दूरी निम्न समीकरण से दी जाती है :

d = λ / 2μ sin θ ………(1)

जहाँ λ वस्तु को प्रकाशित करने के लिए प्रयुक्त प्रकाश का तरंगदैर्घ्य है , θ वस्तु के प्रकाश से शंकु का अर्द्ध कोण है

तथा μ वस्तु और अभिदृश्यक के बीच के माध्यम का अपवर्तनांक है।

समीकरण (1) से ,

सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता = 2μ sin θ / λ

सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता

μ sin θ को सूक्ष्मदर्शी का आंकिक द्वारक (Numerical Aperture ) कहते हैं।

नेत्र के लिए μ sin θ = 0.004 होता है।

उपर्युक्त सूत्र से स्पष्ट है कि सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता अधिक होगी यदि :

1. λ का मान कम अर्थात् वस्तुओं को प्रकाशित करने के लिए प्रयुक्त प्रकाश का तरंगदैर्घ्य कम हो।

जैसे – वस्तुओं को प्रकाशित करने के लिए बैंगनी प्रकाश को प्रयुक्त किया जा सकता है।

2. आंकिक द्वारक μ sin θ का मान अधिक हो अर्थात् μ और θ के मान अधिक हों।

अतः वस्तु को अधिक अपवर्तनांक वाले माध्यम में रखा जाना चाहिये तथा अर्द्ध द्वारक वस्तु पर बनाये गये कोण का मान अधिक होना चाहिए।

सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता को बढ़ाने के लिए विशेष प्रकार का अभिदृश्यक , जिसे तेल निमज्जन अभिदृश्यक (Oil Immersion Objective) कहते हैं , प्रयुक्त किया जाता है।

इस प्रकार के सूक्ष्मदर्शी में देखी जाने वाली वस्तु को वायु में रखने के बजाय अधिक अपवर्तनांक वाले द्रव में रखा जाता है।

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Author: educationallof

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