साइक्लोट्रॉन क्या है
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जानिए , साइक्लोट्रॉन क्या है
साइक्लोट्रॉन (Cyclotron)
साइक्लोट्रॉन एक ऐसी युक्ति है, जिसका उपयोग प्रोटॉनों, ड्यूट्रॉनों, α – कण आदि आवेशित कणों को त्वरित करने में किया जाता है।
इसका निर्माण सर्वप्रथम सन् 1932 में ई. लारेंस (E Lowrence) ने किया था।
सिद्धांत (Principle)—
साइक्लोट्रॉन इस तथ्य पर आधारित है कि जब एक आवेशित कण एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् गति करता है
तथा विद्युत् क्षेत्र द्वारा लगातार त्वरित होता है तो वह बढ़ती हुई त्रिज्या के सर्पिलाकार पथ का अनुसरण करता है
तथा उसकी चाल लगातार बढ़ती चली जाती है।
रचना (Construction)—
साइक्लोट्रॉन की रचना चित्र में प्रदर्शित की गई है।
यह ताँबे के एक खोखले गोले से बना होता है जो D1 और D2 दो भागों में विभक्त होता है।
प्रत्येक भाग को डी (Dee) कहा जाता है
क्योंकि प्रत्येक भाग अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर D के समान होता है।
डीज (Dees) के केन्द्र पर धनायन का स्रोत स्थित होता है।
यह स्रोत सामान्यतः ड्यूटेरियम होता है जिस पर उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों की बमबारी की जाती है जिससे धनायन उत्पन्न होते हैं।
ये डीज एक शक्तिशाली विद्युत् चुम्बक के ध्रुवों के बीच रखे जाते है।
चुम्बकीय क्षेत्र डीज के लम्बवत् होता है।
क्षेत्र की तीव्रता 1-2 टेसला के क्रम की होती है।
एक विद्युत् दोलित्र के द्वारा दोनों डीज के मध्य में 104-105 वोल्ट के क्रम का उच्च आवृत्ति वाला विद्युत् क्षेत्र लगाया जाता है।
विद्युत्-दोलित्र की आवृत्ति 107 हर्ट्ज तक परिवर्तित होती है।
त्वरित धनावेशित कण को बाहर निकालने के लिए D1 में एक खिड़की बनी होती है जिसके बाहर एक विशेषक प्लेट लगी होती है।
इस पूरी व्यवस्था को एक निर्मात् क (Vacum Chamber) में रखा जाता है, जहाँ पारे के 10 के क्रम का होता है।
इतना निर्वात इसलिए रखा जाता है ताकि आयन वायु के अणुओं ऊर्जान खो सकें।
सिद्धांत एवं कार्यविधि (Theory and Working) –
मानलो किसो क्षण आयन स्रोत से m द्रव्यमान तथा q आवेश वाला धनायन उत्पन्न होता है।
मानलो इस क्षण D1 ऋणात्मक विभव पर तथा D2 धनात्मक विभव पर है।
अतः धनायन D1 की ओर त्वरित होकर उसके अन्दर प्रवेश कर जाता है।
ज्यों हो धनायन D1 के अन्दर प्रवेश करता है, उस पर कोई विद्युत् क्षेत्र कार्य नहीं करता, क्योंकि खोखले चालक के अन्दर विद्युत् क्षेत्र शून्य होता है।
उस पर केवल चुम्बकीय क्षेत्र कार्य करता है, जो उसे वृत्तीय पथ में मोड़ देता है।
मानलो चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण B तथा धनायन की चाल v है तब धनायन पर कार्य करने वाला लारेंज बल,
F=qvBsin 90° = qvB
यह बल धनायन को वृत्तीय पथ में गति करने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल mv2/r प्रदान करता है,
जहाँ r वृत्तीय पथ की त्रिज्या है।
qvB= mv2/r
या r = mv/ qB ……(1)
स्पष्ट है कि वृत्तीय पथ की त्रिज्या धनायन की चाल पर निर्भर करती है।
मानलो किसी भी D में अर्धवृत्त तय करने में लगा समय t है, तब
t = दूरी / चाल = πr / v
या t = π / v × mv/qB
t = πm /qB = एक नियतांक। ….(2)
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि किसी भी D में धनायन को गति करने में लगा समय उसकी चाल और वृत्तीय पथ की त्रिज्या पर निर्भर नहीं करता।
D1 में अर्द्धवृत्तीय पथ में गति करने के पश्चात् धनायन पुनः विद्युत् क्षेत्र के सम्पर्क में आता है।
विद्युत् क्षेत्र की आवृत्ति को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि ज्यों ही धनायन D1 से बाहर निकलता है D2 ऋणात्मक विभव पर तथा D1 धनात्मक विभय पर हो जाता है।
अतः धनायन D2 की ओर स्वरित होता है और बढ़ी हुई चाल से D2 के अन्दर प्रवेश करता है।
इस प्रकार समीकरण (1) के अनुसार धनायन D2 के अन्दर अधिक त्रिज्या के अर्धवृतीय पथ में गति करता है किन्तु अब भी D2 में गति का समय वही रहता है।
यही क्रिया बार-बार दुहराई जाती है।
जब धनायन दोनों डीज के गेप में आता है तो यह त्वरित होता है और धनात्मक विभव वाले डीज में बढ़ी हुई चाल से प्रवेश कर प्रत्येक बार बढ़ती हुई क्रिया के वृत्तीय पथ में गति करता है।
इस प्रकार दोनों डीज के अन्दर गति करता हुआ धनायन पर्याप्त उच्च ऊर्जा प्राप्त कर लेता है।
105 वोल्ट के त्यरक विभव में डीज के अन्दर 100 बार गति करके धनायन लगभग 100 MeV की उच्च ऊर्जा प्राप्त कर लेता है।
अंत में विशेषक प्लेट को सहायता से धनायन को एक D में बनी एक खिड़की से बाहर निकाल लिया जाता है।
साइक्लोट्रॉन की सीमायें (Limitations of Cyclotron) –
(1) साइक्लोट्रॉन की सहायता से इलेक्ट्रॉनों को त्वरित नहीं किया जा सकता।
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान कम होता है।
अतः थोड़ी-सी भी ऊर्जा देने पर उसको चाल अत्यधिक बढ़ जाती है।
फलस्वरूप उसको आवृति को दोलायमान विद्युत् क्षेत्र की आवृत्ति के बराबर कर पाना सम्भव नहीं है।
(ii) साइक्लोट्रॉन की सहायता से अनावेशित कणों जैसे-न्यूट्रॉन आदि को त्वरित नहीं किया जा सकता।
(iii) साइक्लोट्रॉन में धनायन को एक निश्चित सीमा की चाल से अधिक त्वरित नहीं किया जा सकता।
जब धनायन की चाल प्रकाश की चाल से तुलनीय हो जाती है तो उसका द्रव्यमान निम्न सूत्र के अनुसार बढ़ जाता है-
m= m0 /√ (1-v2/C2)
जहाँ, mo=धनायन का विराम द्रव्यमान, चाल पर धनायन का द्रव्यमान तथा प्रकाश की चाल।
अर्धवृत्तीय पथ में गति करते हुए धनायन द्वारा लिया गया समय उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है।
धनायन को दोनों डीज के गेप में उस समय आना चाहिए जबकि उनकी ध्रुवता ठीक बदल जाती है।
धनायन का द्रव्यमान बढ़ जाने पर वह डीज की ध्रुवता बदलते समय गेप में नहीं आ पायेगा।
अत: उसे आगे और त्वरित नहीं किया जा सकता।
एकल स्लिट द्वारा प्रकाश का विवर्तन :-
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता :-
कूलॉम का व्युत्क्रम वर्ग-नियम:-