संयोजकता बन्ध सिद्धांत (Valence Bond Theory ,VBT )
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संयोजकता बन्ध सिद्धांत को सर्वप्रथम 1927 मे हिटलर एवं लंदन ने प्रस्तुत किया, जिसें सन् 1933 मे पाउलिंग एवं स्लेटर ने विस्तृत रूप में विकसित किया।
इस प्रकार हिटलर – लंदन द्वारा प्रस्तुत एवं पाउलिंग – स्लेटर द्वारा विकसित सिध्दांत को सम्मिलित रूप से संयोजकता बन्ध सिध्दांत कहते है।
इस सिध्दांत के प्रमुख तथ्य निम्नानुसार हैं –
1. अणु बनाने में भाग लेने वाले परमाणुओं की पहचान अणु मे सुरक्षित रहती हैं।
ये परमाणु अपने संयोजी कोश में ऑर्बिटलो के परस्पर अतिव्यापन से सहसंयोजक बंध का निर्माण करते हुये अणु बनाते हैं।
2. परमाणुओं के संयोजी कोश मे ऑर्बिटल अर्ध्दपूरित होने चाहिए अर्थात उनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होना चाहिए।
संयोजी कोश मे युग्मित इलेक्ट्रॉन युक्त ऑर्बिटलो का बंध निर्माण प्रक्रिया में भाग लेना अब तब तक संभव नहीं है, जब तक वे इलेक्ट्रॉन बहुत कम ऊर्जा के उपयोग से अयुग्मित न हो जाये।
3. बंध बनाने वाले परमाणुओं के संयोजी कोश में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनो के विपरीत होते हैं।
एक परमाणु के संयोजी कोश के ऑर्बिटल दूसरे परमाणु के संयोजी कोश के ऑर्बिटल के साथ अतिव्यापन करते हैं।
4. अतिव्यापन के फलस्वरूप दो परमाण्वीय ऑर्बिटल संपर्क वाले भाग पर एक दूसरे मे विलीन हो जाते हैं।
इन ऑर्बिटलो मे उपस्थित विपरीत चक्रण युक्त इलेक्ट्रॉन के चक्रण परस्पर उदासीन हो जाते हैं।
इस प्रकार के इलेक्ट्रॉन युग्मित हो, दो परमाण्वीय नाभिको से संबंधित हो जाते हैं।
इनके युग्मन से उत्पन्न आकर्षण बल बंध को स्थायित्व प्रदान करता है।
5. संयोजी कोश के ऑर्बिटल के अतिव्यापन के कारण बंधी इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं के मध्य रहतें हैं।
यह संकेन्द्रित इलेक्ट्रॉन मेघ ही दोनों नाभिक को स्थित वैद्युत आकर्षण के द्वारा आबंधित रखताहै। इसे ही सहसंयोजकता बंध कहते हैं।
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6. संयोजी कोश के अर्ध्दपूरित ऑर्बिटल जिस दिशा में परस्पर अतिव्यापन करते हैं वही सहसंयोजक बंध की दिशा होती हैं। इस प्रकार सहसंयोजक बंध मे दिशात्मक गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
7. किसी तत्व के संयोजी कोश में अर्ध्दपूरित ऑर्बिटलो की संख्या उनकी संयोजकता होता है।
एक से अधिक अर्ध्दपूरित ऑर्बिटलो के अतिव्यापन से बहुबंध बनते हैं।
जैसे- O2 से द्विबंध N2 मे त्रिबंध बनता है।
8. सहसंयोजक बंध की प्रबलता ऑर्बिटलो के मध्य अतिव्यापन पर निर्भर करता है।
जितना अधिक अतिव्यापन होगा, बंध उतना अधिक प्रबल होगा। समान ऊर्जा एवं समान सममिति वाले ऑर्बिटलो के मध्य अधिक परिमाणी मे अतिव्यापन होता है।
9. ऑर्बिटलो की सममिति अतिव्यापन की दिशा को निर्धारित करती हैं।
s – ऑर्बिटलो सममित गोलाकार होता है जिसमें इलेक्ट्रॉन घनत्व का वितरण समान रूप से नाभिक के चारो ओर होता है।
अन्य ऑर्बिटलो (p,d & f) की संरचना गोलाकार न होकर असममित व दिशात्मक होती है।
अतः ये अधिकतम इलेक्ट्रॉन घनत्व की दिशा में अतिव्यापन कर अधिक प्रबल बंध बनाते हैं।
जैसे- डंबल आकृति का p – ऑर्बिटल सममित गोलाकार s – ऑर्बिटल की अपेक्षा अधिक प्रबल बंध बनाता हैं।
अणु कक्षक सिद्धांत (Molecular Orbital , MOT ) –
यह सिद्धांत हुण्ड एवं मुलिकन के द्वारा दिया गया। इसके मुख्य बिन्दु निम्न है –
1. दो या दो से अधिक परमाणु ऑर्बिटल आपस मे मिल जाते हैं। व एक बड़ा ऑर्बिटल बनातें हैं जिसे अणु कक्षक कहते हैं।
2. दोनों इलेक्ट्रॉनो के पाये जाने की सर्वाधिक प्रायिकता अब दोनों नाभिकों के आस – पास रहती हैं जो कि अब अणु कक्षक कहलाता है।
3. विभिन्न अणु कक्षको मे नाभिक के चारो इलेक्ट्रॉनो की पूर्ति मे ऑफबाऊ सिध्दांत, हुण्ड का नियम तथा पॉली का अपवर्तन सिध्दांत का पालन होता है।
4. अवयवी नाभिकों के परमाणु ऑर्बिटल केवल संयोजी कोश की नहीं बल्कि प्रथम कोश से अपनी पहचान खो देते हैं।
5. अणु कक्षक परमाणु ऑर्बिटलो के रेखीय संयोग से बनते हैं। हैं।
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