विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव
विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव
या विद्युत् धारा का रासायनिक प्रभाव (Chemical Effect of Electric Current)
जिन पदार्थों में से विद्युत् धारा प्रवाहित होती है, उन्हें विद्युत् के चालक (Conductor) कहते हैं।
अनेक द्रव विद्युत् के चालक होते हैं।
इनमें से कुछ द्रव ऐसे होते हैं जिनमें से विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर उनका प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
ऐसे द्रवों को केवल विद्युत् चालक द्रव कहते हैं, जैसे-पारा और चली हुई धातुएँ।
शेष द्रव ऐसे होते हैं जिनमें से विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर उनमें रासायनिक परिवर्तन हो जाता है तथा वे आयनों में अपघटित हो जाते हैं।
ऐसे द्रवों को विद्युत्-अपघट्य (Electrolyte) कहते हैं।
यह क्रिया वैद्युत अपघटन (Electrolysis) कहलाती है।
अम्ल, क्षार, अम्लीय जल, साधारण नमक, कॉपर सल्फेट इत्यादि लवणों के जलीय विलयन विद्युत् अपघट्य हैं।
इस प्रकार किसी द्रव में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर उसके आयनों में अपघटित होने की प्रक्रिया को वैद्युत अपघटन कहते हैं ।
तथा विद्युत् धारा के उस प्रभाव को, जिसके कारण वैद्युत अपघटन की क्रिया होती है, विद्युत् धारा का रासायनिक प्रभाव कहते हैं।
विद्युत् चालक और विद्युत् अपघट्य में केवल यही अन्तर है कि विद्युत् अपघट्य सदैव यौगिक होते हैं
तथा विद्युत्धारा प्रवाहित करने पर उनमें रासायनिक परिवर्तन हो जाता है
जबकि विद्युत् चालक तत्व भी हो सकते हैं तथा विद्युत्धारा प्रवाहित करने पर उनमें रासायनिक परिवर्तन नहीं होता।
द्रव में विद्युत् धारा प्रवाहित करने के लिए उसमें धातु की दो प्लेटें या तार डुबो देते हैं जिन्हें इलेक्ट्रोड (Electrode) कहते हैं।
जिस प्लेट में से विद्युत्धारा द्रव में प्रवेश करती है उसे ऐनोड (Anode) तथा जिस प्लेट में से होकर विद्युत्धारा द्रव से बाहर निकलती है उसे कैथोड़ (Cathode) कहते हैं।
वैद्युत अपघटन की क्रिया एक बर्तन में की जाती है।
विद्युत् अपघट्य, इलेक्ट्रोड और बर्तन के इस पूरे प्रबन्ध को वोल्टामीटर (Voltameter) कहते हैं।
सन् 1887 में स्वीडन के वैज्ञानिक आर्हीनियस (Arhenius) ने सर्वप्रथम विद्युत् अपघट्य की क्रिया की व्याख्या करने के लिए एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया
जिसे आयनिक नियोजन सिद्धान्त (Ionic Dissociation Theory) कहते हैं।
इस सिद्धान्त के अनुसार जब किसी विद्युत् अपघट्य को किसी द्रव में घोला जाता है तो उसका प्रत्येक अणु दो भागों में वियोजित हो जाता है,
जिन्हें आयन (Ions) कहते हैं तथा इस क्रिया को आयनन कहते हैं।
जिस आयन पर धनावेश होता है उसे धनायन (Cation) तथा जिस आयन पर ऋणावेश होता है उसे ऋणायन (Anion) कहते हैं।
जब तक विलयन में विद्युत् धारा प्रवाहित नहीं की जाती ये आयन, विलयन में अनियमित रूप से घूमते रहते हैं।
जब इलेक्ट्रोडों का सम्बन्ध बैटरी से कर दिया जाता है तो धनायन कैथोड की ओर तथा ऋणायन ऐनोड की ओर चलने लगते हैं,
जहाँ पहुँचकर वे अपना आवेश इलेक्ट्रोडों को देकर (इलेक्ट्रॉन लेकर या इलेक्ट्रॉन देकर) आवेशहीन हो जाते हैं तथा उन पर एकत्रित हो जाते हैं
अथवा रासायनिक क्रिया करते हैं।
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