वान डी ग्राफ जनित्र क्या है

वान डी ग्राफ जनित्र क्या है    (Van-De Graff Generator)

वान डी ग्राफ जनित्र क्या है

सन् 1931 में प्रोफेसर आर. जे. वान-डी ग्राफ ने ऐसे विद्युत् उत्पादक मशीन अर्थात् जनित्र का निर्माण किया

जिससे दस लाख वोल्ट या इससे भी अधिक विभवान्तर उत्पन्न किया जा सकता है।

इस जनित्र को उनके नाम पर ही वान डी ग्राफ जनित्र कहते हैं।

वान डी ग्राफ जनित्र क्या है

सिद्धान्त (Principle)-

वान डी ग्राफ जनित्र की कार्य विधि नुकीले भागों की क्रिया पर आधारित है।

यदि किसी धन आवेशित चालक का कोई सिरा नुकीला है तो नुकोले सिरे पर आवेश का पृष्ठ घनत्व अधिक होता है।

इस स्थिति में नुकीले भाग से वैद्युत पवन उत्पन्न हो जाता है जिसमें धनावेश होता है।

बनावट (Construction)—

चित्र  में वान डी ग्राफ जनित्र की बनावट प्रदर्शित की गई है।

इसमें लगभग 5 मीटर व्यास का धातु का खोखला गोला S होता है जो 15 मीटर ऊंचे विद्युतरोधी स्तम्भों PP पर टिका रहता है ।

P1 और P2 दो घिरनियाँ होती हैं जिनमें से होकर विद्युत्ररोधी पदार्थ, जैसे -रबर या रेशम का बना एक बेल्ट (Belt) गुजरता है।

नीचे की घिरनी Py को एक अन्य मशीन (जिसे चित्र में प्रदर्शित नहीं किया गया है) के द्वारा घुमाया जाता है जिससे बेल्ट ऊर्ध्वाधर तल में तीर की दिशा में घूमने लगता है।

C1 और C2 धातु की दो कंधियाँ होती हैं।

C1 को फुहार कंधो (Spray comb) तथा C2 को संग्राहक कंघी (Collection comb) कहते हैं।

कंघी C1 को एक उच्च तनाव बैटरी के धन सिरे से जोड़ दिया जाता है ताकि वह लगभग 10,000 वोल्ट के धनात्मक विभव पर रह सके।

कंघी C2 को गोला S से जोड़ दिया जाता है।

D एक विसर्जन नलिका (Discharge tube) होती है।

गोले के आवेश के क्षरण (Leakage) को रोकने के लिए जनित्र को एक लोहे के टैंक में, जिसमें दाबयुक्त (लगभग 15 वायुमण्डलीय दाब) वायु भरी होती है, बन्द कर देते हैं।

लोहे का टैंक पृथ्वीकृत होता है।

कार्य-विधि (Working)-

फुहार कंघी C1 के नुकीले सिरों पर आवेश का पृष्ठ घनत्व अधिक होता है जिससे वैद्युत पवन चलने लगता है ।

धनावेश युक्त इस वैद्युत पवन के कारण बेल्ट का सामने वाला भाग धनावेशित हो जाता है।

धनावेश युक्त बेल्ट का यह भाग ऊपर की ओर चलने लगता है।

जब यह भाग संग्राहक कंघी C2 के सामने पहुंचता है तो कंधी के सिरों पर ऋणावेश तथा गोले के बाह्य पृष्ठ पर धनावेश प्रेरित कर देता है।

इस समय कंघी C2 में प्रेरित ऋणावेश के कारण पुनः वैद्युत-पवन चलने लगता है जो बेल्ट के धनावेश को समाप्त कर देता है।

इस प्रकार कंघी C2 के ऊपर जाने वाला बेल्ट का भाग अनावेशित होता जाता है।

बेल्ट का यह भाग पुनः धूमकर C1 के पास आता है और धनावेशित हो जाता है।

यही प्रक्रिया लगातार चलती रहती है, जिससे खोखला गोला S अधिक-से-अधिक आवेश प्राप्त करता जाता है।

फलस्वरूप उसका विभव लगभग 10 लाख वोल्ट तक या उससे अधिक बढ़ जाता है।

वान ही ग्राफ जनित्र की सहायता से प्रक्षेप्यों, जैसे-प्रोटॉन, ड्यूट्रॉन आदि को त्वरित किया जा सकता है।

इसके लिए विसर्जक नलिका D प्रयुक्त करते हैं जिसका ऊपरी सिरा खोखले गोले S के अन्दर होता है तथा निचला सिरा पृथ्वीकृत होता है।

विसर्जक नलिका से निकलने पर इनकी गतिज ऊर्जा अत्यधिक होती है।

अतः ये नाभिकीय विघटन के लिए प्रयुक्त किये जा सकते हैं।

उपयोग (Uses) –

(1) उच्च विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए।

(ii) प्रोटॉन, ड्यूट्रॉन, α कण आदि को त्वरित करके नाभिकीय विघटन में।

(iii) नाभिकीय भौतिकी के अध्ययन में।

दोष (Demerits) –

(i) बड़ा आकार होने के कारण यह असुविधाजनक होता है।

(ii) उच्च विभव के कारण यह खतरनाक होता है।

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