प्राकृत पूर्ण एवं पूर्णाक संख्याएं (Natural,Whole and Integer Numbers )
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प्राकृत पूर्ण एवं पूर्णाक संख्याएं
संख्याएं 1,2,3,4….. का प्रयोग गिन्ने के लिए किया जाता हैं। गणना की इन संख्याओं को प्राकृत संख्याएँ कहते हैं।
सभी प्राकृत संख्याओं के समुच्चय को प्रतीक N से प्रकट करते हैं।
इस प्रकार N = {1,2,3,4,….}पूर्ण संख्याएँ ( Whole Number) यदि प्राकृत संख्याओं के समुच्चय के शुन्य को भी सम्मिलित कर लिया जाये तो इस प्रकार बना नवीन समुच्चय पूर्ण संख्याओं का समुच्चय कहलाता है।
और इसेW से व्यक्त करते हैं इस प्रकार
W = {1,2,3,4,……..}
पूर्णाक संख्याएं (Integer numbers)
दो प्राकृत संख्याओं का योग एवं गुणा सदैव प्राकृत संख्या होता है किन्तु अन्तर (व्यवकलन ) प्राकृत संख्या नहीं होती।
दो संख्याओं के व्यवकलन को संभव बनाने के लिए ऋणात्मक संख्याओं का आगमन हुआ।
प्राकृत संख्याओं, शुन्य और ऋणात्मक संख्याओं के समुच्चय पूर्णांकों का समुच्चय कहते हैं। इसे हम Z या I द्वारा दर्शाते हैं
Z या I ={…….., -3,-2,-1,0,1,2,3, …….}
परवर्ती एवं पूर्ववर्ती संख्याएँ (Successor and Predecessor Numbers)
समुच्चय N, W, Z मे दायीं ओर की प्रत्येक संख्या, अपनी बाँयीं ओर की संख्या की परवर्ती होती हैं।
तथा बाँयीं ओर की संख्या पूर्ववर्ती है। इसी प्रकार संख्या -1 की परवर्ती 0तथा0 की पूर्ववर्ती -1 है।
दो पूर्णांकों का योगफल सदैव एक पूर्णांक होता हैं।
और यदि एक पूर्णांक को दूसरे पूर्णांक मे से घटायें तो परिणाम सदैव एक पूर्णांक होता हैं।
यदि एक पूर्णांक को दूसरे पर्णांक से गुणा किया जाए तो गुणनफल एक पूर्णाक ही होता हैं।
इस प्रकार समुच्चय Z योग,व्यवकलन व गुणन संक्रिया के सापेक्ष संवृत्त (Closed) हैं।
विद्युत् वाहक बल और विभवान्तर में अन्तर
विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र और द्रव्य चुम्बकीय क्षेत्र में अंतर