प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में अन्तर
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जानिए , प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में अन्तर
प्रत्यावर्ती धारा :-
1. इस धारा की दिशा और मान दोनों बार – बार बदलते हैं।
2. यह धारा चुम्बकीय या रासायनिक प्रभाव प्रदर्शित नहीं करती , केवल ऊष्मीय प्रभाव प्रदर्शित करती है।
3. इस धारा को मापने वाले उपकरण धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित होते हैं।
4. विद्युत्-चुम्बक बनाने या विद्युत् लेपन में इस धारा का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
5. इस धारा में ट्रान्सफार्मर का उपयोग किया जा सकता है।
6. यह धारा दिष्ट-धारा से अधिक खतरनाक होती है।
7. इस धारा को चोक कुण्डली की सहायता से कम शक्ति व्यय पर नियन्त्रित किया जा सकता है।
8. इस धारा का अधिकांश भाग तार की सतह पर ही बहता है।
9. इस धारा को प्रवाहित करने के लिए कई मोटर पतले तारों को भांजकर बनाया गया मोटा तार लेते हैं।
दिष्ट-धारा :-
1. इस धारा की दिशा स्थिर रहती है चाहे उसका मान बदले या न बदले।
2. यह धारा चुम्बकीय , रासायनिक और ऊष्मीय तीनों प्रभाव प्रदर्शित करती है।
3. इस धारा को मापने वाले उपकरण धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर आधारित होते हैं।
4. विद्युत्-चुम्बक बनाने या विद्युत् लेपन में इस धारा का उपयोग किया जाता है।
5. इस धारा में ट्रान्सफार्मर का उपयोग नहीं किया जा सकता।
6. यह धारा प्रत्यावर्ती धारा से कम खतरनाक होती है।
7. इस धारा को ओमीय प्रतिरोध की सहायता से नियन्त्रित किया जा सकता है , किन्तु इसमें शक्ति व्यय अधिक होता है।
8. यह धारा तार के समस्त अनुप्रस्थ परिच्छेद में से होकर बहती है।
9. इस धारा को एक ही तार से प्रवाहित करते हैं।
डायनमो और दिष्ट धारा मोटर में अन्तर :-
डायनमो :-
1.यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
2. यह विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिध्दांत पर आधारित है।
3. इसमें फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम लागू होता है।
4. इसमें चुम्बकीय क्षेत्र में कुण्डली को घुमाने पर उसमें प्रेरित वि. वाहक बल उत्पन्न होता है।
दिष्ट-धारा मोटर :-
1. यह विद्युत्-ऊर्जा को यान्त्रिक-ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
2. यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल लगता है।
3. इसमें फ्लेमिंग के बायें हाथ का नियम लागू होता है।
4. इसमें चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित कुण्डली में धारा प्रवाहित करने पर कुण्डली घूमने लगती है।
अपचायी ट्रान्सफॉर्मर और उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर में अन्तर :-
अपचायी ट्रान्सफॉर्मर :-
1. यह ट्रान्सफॉर्मर प्रत्यावर्ती विभवान्तर को घटा देता है।
2. इसकी द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से कम होती है।
3. यह धारा की प्रबलता को बढ़ा देता है।
4. इसका परिणमन अनुपात एक से कम होता है।
उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर :-
1. यह ट्रान्सफॉर्मर प्रत्यावर्ती विभवान्तर को बढ़ा देता है।
2. इसकी द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से अधिक होती है।
3. यह धारा की प्रबलता को घटा देता है।
4. इसका परिणमन अनुपात एक से अधिक होता है।
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