परावैद्युत माध्यम (Dielectrics)
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जानिए , परावैद्युत माध्यम (Dielectrics)
परावैद्युत वे पदार्थ होते हैं जो अपने में से विद्युत् को प्रवाहित नहीं होने देते,
किन्तु विद्युत् प्रभाव का प्रदर्शन करते हैं। इनमें मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अभाव होता है।
परावैद्युत विद्युतरोधी पदार्थ होते हैं, जो विद्युत क्षेत्र में रखे जाने पर ध्रुवित (Polarised) हो जाते हैं।
हम जानते हैं कि प्रत्येक पदार्थ अणुओं से मिलकर बना होता है।
अणु विद्युत् रूपेण उदासीन होते हैं,
यद्यपि उनमें विपरीत प्रकार के आवेशित कण (इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन) मौजूद रहते हैं।
नाभिक के शित प्रोटॉन होते हैं, जबकि नाभिक के बाहर ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन उसके चारों ओर वितरित रहते हैं।
आवेश का केन्द्र (Centre of Charge) एक ऐसा बिन्दु होता है,
जहाँ पर समस्त आवेश को केन्द्रित माना जा सकता है (यह द्रव्यमान केन्द्र से समजणी होता है)।
स्पष्ट है कि प्रत्येक अणु में आवेश के दो केन्द्र होते हैं—(1) धनावेश का केन्द्र और (ii) ऋणावेश का केन्द्र ।
परावैद्युत के प्रकार-
परावैद्युत दो प्रकार के होते हैं
(i) ध्रुवीय परावैद्युत और
(ii) अधुवीय परावैद्युत
(i) ध्रुवीय परावैद्युत (Polar Dielectrics)-
ध्रुवीय परावैद्युत वे पदार्थ होते हैं, जिनके अणुओं के धनावेशों का केन्द्र और ऋणावेशों का केन्द्र सम्पाती नहीं होते।
ध्रुवीय परावैद्युतका प्रत्येक अणु वैद्युत दिध्रुव की भाँति कार्य करता है।
अतः जब किसी परावैट को किसी विद्युत् क्षेत्र में रखा जाता है,
तो उसके अणु बल आपूर्ण का अनुभव करते हैं और क्षेत्र की दिशा में संरेखित होने का प्रयास करते हैं H2O HCI आदि ध्रुवीय परावैद्युत हैं।
(ii) अध्रुवीय परावैद्युत (Non-Polar Dielectrics)-
अध्रुवीय परावैद्युत वे पदार्थ होते हैं जिनके अणुओं के धनावेशों का केन्द्र ऋणावेशों के केन्द्र से सम्पाती होता है।
इस प्रकार अध्रुवीय परावैद्युत के अणुओं में वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण नहीं होता।
जब अध्रुवीय परावैद्युत को किसी विद्युत् क्षेत्र में रखा जाता है, तो धनावेश और ऋणावेश थोड़ा-सा विस्थापित हो जाते हैं।
फलस्वरूप उनके केन्द्र सम्पाती नहीं रह पाते।
इस प्रकार अध्रुवीय परावैद्युत को किसो विद्युत् क्षेत्र में रखे जाने पर उसके अणुओं में द्विध्रुव आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है।
विद्युत् क्षेत्र लगाये जाने पर अध्रुवीय परावैद्युत के अणुओं के धनावेशों के केन्द्र और ऋणावेशों के केन्द्र विस्थापित हो जाने की क्रिया को परावैद्युत का ध्रुवण (Polarisation) कहते हैं।
परावैद्युत का ध्रुवण (Polarisation of Dielectrics) –
परावैद्युत माध्यम सदैव विद्युत् रूप से उदासीन होता है चाहे वह ध्रुवीय हो या अध्रुवीय हो।
ध्रुवीय परावैद्युत के अणु इधर-उधर बिखरे रहते हैं।
एक अणु का धन सि दूसरे अणु के ऋण सिरे के पास होता है।
इस प्रकार वे एक-दूसरे के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं जिससे परिणामी द्विभुत आपूर्ण शून्य होता है ।
जब किसी परावैद्युत को किसी विद्युत् क्षेत्र में रखा जाता है तो उसके अणुओं पर (जो वैद्युत द्विध्रुव को भीति कार्य करते हैं) विद्युत् क्षेत्र के कारण बल आपूर्ण कार्य करने लगता है।
यह बल आपूर्ण प्रत्येक अणु को क्षेत्र के समान्तर लाने का प्रयास करता है।
विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता बढ़ाने पर बल आघूर्ण का मान भी बढ़ने लगता है।
फलस्वरूप अधिक-से-अधिक अणु क्षेत्र की दिशा में संरेखित होने लगते हैं।
चित्र में P और Q एक समान्तर प्लेट संधारित्र को दो प्लेटें हैं।
उनके मध्य ABCD एक आयताकार परावैद्युत माध्यम है।
यदि परावैद्युत ध्रुवीय है तो दोनों प्लेटों के बीच विद्युत् क्षेत्र लगाने पर उसके अणु विद्युत् क्षेत्र के अनुदिश संरेखित होने लगते हैं
और यदि परावैद्युत अध्रुवीय है तो अणुओं में द्विध्रुव आघूर्ण प्रेरित हो जाते हैं।
इस प्रकार विद्युत् क्षेत्र के कारण परावैद्युत ध्रुवित हो जाता है।
फलस्वरूप उसके अणुओं के ऋणावेश धनावेशित प्लेट P को और तथा नावेश ऋणावेशित प्लेट Q की ओर विस्थापित हो जाते हैं।
इस प्रकार परावैद्युत के फलक AB पर ऋणावेश की अधिकता तथा फलक CD पर धनावेश की अधिकता होती है,
किन्तु मध्य में नेट (कुल) आवेश का मान शून्य होता है,
क्योंकि प्रत्येक अणु का धनावेश अगले अणु के ऋणावेश के प्रभाव को निरस्त कर देता है।
यदि P और Q में आवेश होने के कारण विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता E0 तथा परावैद्युत माध्यम में प्रेरित आवेश के कारण विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता Ep, हो, तो E0, और Ep की दिशायें परस्पर विपरोत होंगी ।
अत: संधारित्र की दोनों प्लेटों के मध्य परावैद्युत माध्यम लेने पर प्रभावी विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता E = Eo-Ep , इसकी दिशा E0 के अनुदिश होगी।
अतः किसी विद्युत् क्षेत्र में परावैद्युत माध्यम रख देने पर मूल विद्युत् क्षेत्र की तीव्रता सदैव घट जाती है।
परावैद्युत माध्यम (Dielectrics)
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