दिष्टीकरण किसे कहते हैं
Table of Contents
दिष्टीकरण किसे कहते हैं
प्रत्यावर्ती विभव को दिष्ट विभव में बदलना ही दिष्टीकरण कहलाता है तथा इस कार्य में प्रयुक्त डायोड दिष्टीकारी (rectifier) कहलाता है
इसके दो प्रकार होते हैं
1 अर्ध्द तरंग दिष्टीकारी
2 पूर्ण तरंग दिष्टीकारी
यद्यपि अर्द्ध तरंग तथा पूर्ण तरंग दिष्टीकारी दोनों ही पूर्णतः d.c. नहीं उत्पन्न करते हैं, लेकिन इनके निर्गत विभव के पूर्ण चक्र में औसत मान शून्य नहीं होते हैं जैसा कि a.c. में होता है, इसलिए इन्हें दिष्टीकारी कहा जाता है।
दिष्टीकरण की क्षमता ( efficiency of rectifier) –
किसी भी दिष्टीकारी की दक्षता, उससे निर्गत d.c. पावर तथा उसमें निवेशी a.c. पावर की निष्पत्ति के बराबर होता है, अर्थात्
दिष्टीकारी की दक्षता =d.c. निर्गत पावर / a.c. निवेशी पावर
उर्मिका घटक (Ripple factor) –
दिष्टीकारी से निर्गत धारा का आयाम , समय के साथ नियत नहीं रहता हैं, अतः यह पूर्णतः d.c.नही होता है,बल्कि एक दिशीय a.c. होता है। अतः निर्गत धारा(या विभव) में a.c. अवयवों की निर्गत धारा में d.c. अवयवों की निष्पत्ति को ऊर्मिका घटक कहते हैं, अर्थात्
ऊर्मिका घटक = निर्गत धारा में a.c. अवयव / निर्गत धारा में d.c. अवयव ।
स्पष्टतः एक अच्छे दिष्टकारी का ऊर्मिका घटक न्यूनतम(=0) होना चाहिए।
अर्ध तरंग दिषटीकारी व पूर्ण तरंग दिषटीकारी में अंतर
अर्द्ध तरंग दिष्टीकारी –
1. इसमें ट्रान्सफार्मर की द्वितीयक कुण्डली से धारा सदैव एक ही दिशा में बहती है जिससे ट्रान्सफार्मर की क्रोड में शैथिल्य हानि के कारण इसकी दक्षता घट जाती है
2. इसमें धारा तथा वोल्टेज के औसत मान पूर्ण तरंग दिष्टीकारी की तुलना में आधे होते हैं।
3. इसमें निर्गत धारा का r.m.s. मान पूर्ण तरंग दिष्टीकारी की तुलना में1/√2 गुना होता है।
4. इसमें लोड पर प्राप्त d.c. पावर पूर्ण तरंग दिष्टीकारी की तुलना में एक चौथाई होती हैं।
5. इसकी दक्षता पूर्ण तरंग दिष्टीकारी की तुलना में आधी होती है।
6. इसका ऊर्मिका घटक बहुत अधिक(=1.21) होता है।
7. इसका वोल्टेज नियमन क्षीण होता है।
पूर्ण तरंग दिष्टीकारी-
1. इसमें ट्रान्सफार्मर की द्वितीयक कुण्डली के मध्य बिंदु से दोनों अर्द्ध भागों में समान धारा परस्पर विपरीत दिशा में बहती है जिससे ट्रान्सफार्मर की क्रोड में कोई शैथिल्य हानि नहीं होती है।
2. इसमें धारा तथा वोल्टेज के औसत मान अर्द्ध तरंग दिष्टीकारी की तुलना में दोगुने होते हैं।
3. इसमें निर्गत धारा का r.m.s.मान अर्द्ध तरंग दिष्टीकारी की तुलना में √2 गुना होता है।
4. इसमें लोड पर प्राप्त d.c. पावर अर्द्ध तरंग दिष्टीकारी की तुलना में चार गुनी होती है।
5. इसकी दक्षता अर्द्ध तरंग दिष्टीकारी की तुलना में दोगुनी होती है।
6. इसका ऊर्मिका घटक अपेक्षाकृत कम( =0.482) होता है।
7. इसका वोल्टेज नियमन अच्छा होता है।
पावर सप्लाई (Power Supply) –
पावर सप्लाई के दो प्रकार होते हैं ।
1. अनियमित पावर सप्लाई
फिल्टर परिपथ युक्त एक पूर्ण तरंग दिष्टीकारी(दो डायोड से बना अथवा चार डायोडो से बना ब्रिज दिष्टीकारी ) को अनियमित पावर सप्लाई कहते हैं। अनियमित पावर सप्लाई में यद्यपि निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पूर्ण चक्र में निर्गत d.c. वोल्टेज प्राप्त होता है लेकिन लोड में धारा परिवर्तन करने पर या निवेशी वोल्टेज बदलने पर यह d.c.वोल्टेज नियत नहीं रह पाता है। इसके विपरित,
2. नियमित पावर सप्लाई
नियमित पावर सप्लाई में निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पूर्ण चक्र में निर्गत d.c.वोल्टेज प्राप्त होता है तथा यह d.c.वोल्टेज ,लोड में धारा परिवर्तन करने पर अथवा निवेशी वोल्टेज में परिवर्तन करने पर भी काफी सीमा तक नियत रहता है। इसके लिए फिल्टर परिपथ तथा लोड के बीच वोल्टेज नियामक परिपथ लगाया जाता है। इस प्रकार नियमित वोल्टेज पावर सप्लाई के निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं।
1.अपचायी ट्रान्सफाॅर्मर द्वारा निवेशी प्रत्यावर्ती विभव
2.पूर्ण तरंग दिष्टीकारी।
3.फिल्टर परिपथ।
4.वोल्टेज नियमन परिपथ।
ब्रूस्टर का नियम (Brewester’s law )
अनुदैर्ध्य तरंग में ध्रुवण क्यों नहीं होता ?
आवेशों का संरक्षण किसे कहते हैं