तरंगाग्र (Wavefront)
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तरंगाग्र (Wavefront) –
प्रकाश के तरंग सिध्दांत के अनुसार प्रकाश स्त्रोत से निकलकर प्रकाश तरंगें समांगी माध्यम ईथर में चारों ओर फैल जाती है
और ईथर के कण कम्पन करने लगते हैं।
किसी क्षण पर प्रकाश स्त्रोत से समान दूरी पर स्थित ईथर के साथ कण समान कला में होते हैं।
इस प्रकार , किसी क्षण विशेष पर माध्यम की वह सतह , जिस पर स्थित सभी कण समान कला में कम्पन करते हैं , तरंगाग्र (Wavefront) कहलाती है।
जैसे जैसे तरंग आगे बढ़ती जाती है , तरंगाग्र भी आगे बढ़ता जाता है।
तरंगाग्र के लम्बवत् खींची गयी रेखाएं प्रकाश किरणों (Rays of Light) को प्रदर्शित करती है।
इन किरणों के अनुदिश ही ऊर्जा संचरित होती है।चित्र में S प्रकाश स्त्रोत , AB तरंगाग्र तथा SC , SD और SE किरणें हैं।
किरणों को तरंग अभिलम्ब भी कहते हैं।
तरंगाग्र के प्रकार (Types of Wavefront) :-
तरंगाग्र निम्न प्रकार के होते हैं –
1. गोलाकार तरंगाग्र
2. वृत्तीय तरंगाग्र
3. बेलनाकार तरंगाग्र
4. समतल तरंगाग्र।
1. गोलाकार तरंगाग्र (Spherical Wavefront) :-
जब प्रकाश स्त्रोत , बिन्दु समान होता है तो स्त्रोत से सीमित दूरी पर जो तरंगाग्र बनता है , वह गोलाकार तरंगाग्र होता है। चित्र में S एक बिन्दु प्रकाश स्त्रोत है
जिसमें r₁ दूरी पर तरंगाग्र A₁B₁ तथा r₂ दूरी पर तरंगाग्र A₂B₂ प्रदर्शित किये गये हैं।
यह तरंगाग्र गोलाकार तरंगाग्र है।
किरणों की दिशाएँ तरंगाग्र के लम्बवत् है।
2. वृत्तीय तरंगाग्र (Circular Wavefront) :-
जब प्रकाश स्त्रोत बिन्दु के आकार का होता है तथा तरंग एक समतल में चलती है तो स्त्रोत से सीमित दूरी पर जो तरंगाग्र बनता है उसे वृत्तीय तरंगाग्र कहते हैं।
3. बेलनाकार तरंगाग्र (Cylindrical Wavefront) :-
यदि प्रकाश स्त्रोत रेखावत् हो तो इस स्त्रोत से सीमित दूरी पर निर्मित तरंगाग्र बेलनाकार तरंगाग्र होता है। चित्र में SS₁ एक रेखावत् स्त्रोत है
तथा इससे r₁ और r₂ की दूरी पर दो बेलनाकार तरंगाग्र A₁B₁ और A₂B₂ हैं।
4. समतल तरंगाग्र (Plane Wavefront) :-
प्रकाश स्त्रोत चाहे बिन्दुवत् हो या सरल रेखावत् ,
उसके असीमित अर्थात् अत्यधिक दूरी पर निर्मित सम्पूर्ण तरंगाग्र के एक भाग को समतल माना जा सकता है।
इस प्रकार , प्रकाश स्त्रोत से असीमित दूरी पर निर्मित तरंगाग्र समतल तरंगाग्र होता है। चित्र में A₁B₁ और A₂B₂ समतल तरंगाग्र हैं।