ट्रान्जिसटर के निर्माण
ट्रान्जिसटर के निर्माण
ट्रांजिस्टर के निर्माण में अर्द्धचालक का ही उपयोग क्यों किया जाता है ?
N-प्रकार और P-प्रकार के अर्द्धचालकों को मिलाकर ट्रांजिस्टर बनाया जाता है।
N-प्रकार के अर्द्धचालकों में इलेक्ट्रॉन विद्युत वाहक का कार्य करते हैं , जबकि P- प्रकार के अर्द्धचालकों में होल विद्युत वाहक का कार्य करते हैं।
इस प्रकार ट्रांजिस्टर की क्रिया इलेक्ट्रॉनों की गति और होलों की गति को नियंत्रित करने पर आधारित है।
नियंत्रण की यह क्रिया चालकों और विद्युत रोधी में संभव नहीं है।
अतः ट्रांजिस्टर के निर्माण में अर्द्धचालक का उपयोग किया जाता है।
L-C परिपथ में दोलन क्यों अवमंदित होते हैं ? ट्रांजिस्टर के रूप में इनका दोलन आयाम कैसे नियत रखा जाता है ?
L-C परिपथ में सर्वप्रथम संधारित्र आवेशित होता है और फिर प्रेरकत्व द्वारा विसर्जित होता है।
संधारित्र की विद्युत ऊर्जा प्रेरकत्व की चुम्बकीय ऊर्जा में प्रेरकत्व की चुम्बकीय ऊर्जा संधारित्र की विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होती रहती हैं।
परिपथ के प्रतिरोध के कारण दोलन का आयाम लगातार घटता जाता है।
दोलन आयाम को नियत रखने के लिए ऊर्जा में क्षति की पूर्ति ट्रांजिस्टर की सहायता से उसके साथ लगे दिष्टधारा स्त्रोत से की जाती है।
ट्रांजिस्टर में उत्सर्जक व संग्राहक की तुलना में आधार को बहुत पतला क्यों बनाया जाता है ?
आधार में इलेक्ट्रॉन और होल अल्प मात्रा में संयोग कर सकें , इसलिए आधार को पतला बनाया जाता है।
इस स्थिति में आधार धारा का मान बहुत ही कम होता है।
फलस्वरूप संग्राहक धारा लगभग उत्सर्जक धारा के बराबर होती है।
इस प्रकार , वोल्टेज लाभ और शक्ति लाभ का मान बढ़ जाता है।
अर्द्धचालकों को गर्म करने पर उनकी विद्युत चालकता किस प्रकार प्रभावित होती है ?
जब किसी शुद्ध अर्द्धचालक को गर्म किया जाता है , तो कुछ सहसंयोजक बंध टूट जाते हैं जिससे संयोजक इलेक्ट्रॉन गति करने के लिए मुक्त हो जाते हैं।
जैसे जैसे ताप बढ़ता है , मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती जाती है।
अतः उनकी विद्युत चालकता बढ़ने लगती है।
किसी चालक के ताप को बढ़ाने पर उसकी चालकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
धातुओं में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत अधिक होती है।
अतः जब किसी चालक के ताप को बढ़ाया जाता है , तो स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
फलस्वरूप ये परस्पर तथा धातु के आयनों से तेजी से टकराते हैं।
अधिक टक्करों के कारण धातु का प्रतिरोध बढ़ जाता हैं जिससे उसकी चालकता कम हो जाती है।
जब किसी अर्द्धचालक में प्रबल विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है , तो क्या होता है ?
अर्द्धचालक में प्रबल विद्युत धारा प्रवाहित करने पर अर्द्धचालक गर्म हो जाता है , जिसके कारण सहसंयोजक बंध टूट जाते हैं और अर्द्धचालक बेकार हो जाता है।
सहसंयोजक बंधों के टूटने से बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं जिससे अर्द्धचालक , चालक की भाँति कार्य करने लगता है।
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