
जल प्रदूषण
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(WATER POLLUTION)
जानिए, जल प्रदूषण क्या है?
जल प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Water Pollution) –
जल के निश्चित भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण होते हैं,
अतः जल के इन लक्षणों में किसी भी प्रकार का परिर्वतन जिसका जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है जल प्रदूषण कहलाता है।
अन्य शब्दों में किसी बाह्य घुलनशील अथवा अघुलनशील वस्तुओं के जल में मिलने से जल के प्राकृतिक स्वरूप में जो परिवर्तन होता है। उसे जल प्रदूषण कहते हैं।
इसे प्रदूषित जल भी कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार,
“प्राकृतिक या अन्य स्त्रोतों से उत्पन्न अवांछित पदार्थों के घुलने के कारण जल दूषित हो जाता है
तथा वह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिए घातक हो जाता है
तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता है।”
जल प्रदूषण के प्रमुख कारण तथा इसके स्त्रोत [CAUSES OF WATER POLLUTION AND ITIS SOURCES)
जल प्रदूषण के कारण / स्त्रोत दो प्रकार के होते हैं-
(अ) प्राकृतिक कारण (Natural causes)
(ब) मानवीय कारण (Human causes)
(अ) प्राकृतिक कारण/स्त्रोत (Natural Causes/Sources):-
हवा में गैसों या धूल के कणों का वर्षा के पानी से मिलने पर बर्फ के पिघलने पर उसमें विभिन्न लवणों का घुल जाना,
जमीन पर मिट्टी के क्षारीय पदार्थों के घुल जाने पर, पशुओं का अवशेष, पेड़-पौधों तथा जानवरों के सड़ जाने तथा पानी में घुल-मिल जाने
या कार्बनिक पदार्थों के पानी में घुलने पर आदि सब प्राकृतिक तथ्य जल प्रदूषण के कारण हैं।
(ब) मानवीय कारण/स्त्रोत (Human Causes/Sources) –
मानव की विभिन्न गतिविधियों के कारण विभिन्न जल स्त्रोतों जैसे- झील, नदी, तालाब आदि में अपशिष्ट (Waste) पदार्थों के मिलने से जो प्रदूषण होता है
वह जल प्रदूषण के मानवीय स्त्रोत के अन्तर्गत आता है।
इनमें निम्नलिखित प्रमुख है
1. औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial wastes):-
कारखानों से निकलने वाले कार्बनिक पदार्थ के जल में विसर्जित किए जाते हैं जिससे जल की अशुद्धता बढ़ जाती है।
जूट की घुलाई, चमड़े की रंगाई व सफाई, शराब, कागज-निर्माण
तथा खनिज रसायनशालाओं, औषधि निर्माणक इकाइयों से बड़े पैमाने पर दूषित जल समीप की नदी, तालाब में प्रदूषण पैदा करने के साथ-साथ पर्यावरण को भी प्रदूषित कर देती है।
2. अपमार्जक (Detergents):-
घरों, होटलों में बर्तनों, फर्श व कपड़ों की सफाई करने में साबुनों व अपमार्जकों का प्रयोग किया जाता है।
ये साफ की गई गत्त्दगी को भी अपने साथ बहाते हुए साफ जल में मिलकर इसे संदूषित कर देते हैं और जल प्रदूषित हो जाता है।
3. वाहित मल (Sewage):-
घरेलू एवं सार्वजनिक शैचालयों से निस्तारित मल-मूत्र को नदियों एवं जलाशयों में विसर्जित किया जाता है और जल प्रदूषित हो जाता है।
4. कचरे का निस्तारण (Disposal of wastes):-
शहर/गाँव में घरों, भवनों, कारखानों के निर्माण, विभिन्न पैकिंग सम्बन्धी वस्तुओं से कूड़ा-कचरा (प्लास्टिक के थैले, बोतलें आदि) निकलता है,
जिसे समीपवर्ती स्थानों पर निस्तारित कर दिया जाता है। वहाँ पर कूड़ा सड़कों पर ही पड़ा रहता है।
वर्षा के जल के साथ ऐसा कूड़ा-करकट बहता हुआ नदियों एवं जलाशयों में पहुँचता है।
ऐसे पदार्थों द्वारा जल का अधिक समय तक प्रदूषण होता रहता है।
5. उर्वरक, कीटनाशक, रोगनाशक तथा खरपतवार नाशक दवाइयों का स्वच्छ जल में मिश्रण (Mixture of fertilizers, insecticides, pesticides and weedicides in pure water):-
रासायनिक उर्वरको, कीटनाशकों रोग नाशकों तथा खरपतवार नाशकों का प्रयोग कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है।
वर्षा का जल इन पदार्थों को बहाकर स्वच्छ जल के जलाशयों में पहुँचा देता है। इन पदार्थों का अधिक मात्रा में जब जल में घुलन होता है तो जल प्रदूषित हो जाता है।
डी. डी. टी. कीटनाशक में आर्सेनिक, पारा, सीसा, क्लोरीन, फ्लोरीन तथा फॉस्फोरस तत्वों से बनाई जाती है।
ये तत्व न केवल कीटों या रोगों को नष्ट करते हैं, वरन् ये मनुष्य के शरीर में पहुँचकर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
मछलियों के शरीर में इसके प्रविष्ट हो जाने पर उनकी प्रजनन क्षमता बहुत कम हो जाती है।
पक्षियों में इसके कारण कैल्शियम की कमी हो जाती है और उनके अण्डे परिपक्व होने से पूर्व ही टूट जाते हैं।
6. तेल का रिसाव (Oil spill):-
पेट्रोलियम पदार्थों का रिसाव समुद्री जल प्रदूषण का बड़ा कारण है।
पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्री मार्गों से टैंकरों द्वारा किया जाता है।
इन टैंकरों से रिसाव होने से अथवा जहाजों के दुर्घटनाग्रस्त होकर डूबने से समुद्री जल प्रदूषित होता रहता है।
तेल जल की सतह पर तैरता रहता है, इसके कारण जल में रहने वाले जीवों को श्वास लेने में कठिनाई होती है।
7. रेडियोधर्मी पदार्थों का जल में निस्तारण (Disposal of radioactive substances in water):-
रेडियो पदार्थों के विकिरण तथा विषाक्त कण्टेनरों के समुद्र में विसर्जन से जल बड़े पैमाने पर प्रदूषित होता है।
परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों में भारी जल (D₂O) का उपयोग शीतलक के रूप में किया जाता है,
जिससे निकला बेकार जल पूरी तरह विषाक्त हो जाता है।
जब इस संदूषित जल को किसी स्वच्छ जल में डालते हैं तो इससे जल इतना अधिक दूषित हो जाता है कि यह पीने तथा जलीय जीवों के जीवित रहने के योग्य नहीं रहता है।
समुद्रों की अगाध गहराई में अब परमाणु बमों का भी परीक्षण किया जाने लगा है।
इससे जल में रेडियोधर्मी प्रदूषण का खतरा और बढ़ गया है।
8. बाँधों के निर्माण द्वारा जल का प्रदूषण (Water pollution by dam construction):-
नदियों के मार्गों में बाँधों के निर्माण से नदी के प्रवाह मार्ग में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है।
बाँधों के कारण जल की स्वयं-शुद्धि (Self purifying) क्षमता घट जाती है।
जलाशयों में एकत्रित जल वाष्पीकरण होते रहने के कारण खारापन भी बढ़ जाता है,
प्रवाह न होने से नदियों में प्रदूषण बढ़ जाता है यह प्रकृति के विरूद्ध किया गया कार्य होता है।
इस प्रकार हम जल प्रदूषण में अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं।
9. धार्मिक विश्वास (Religious faith):-
जल प्रदूषण को बढ़ाने में धार्मिक विश्वास व रीतिरिवाज भी बहुत सीमा तक योगदान देते हैं।
नदियों, तालाबों, सरोवरों, सागरों व जलाशयों में पवित्र डुबकी लगाना या स्नान करना तथा अस्थिविसर्जन करना धार्मिक दृष्टि से पवित्र एवं आवश्यक माना जाता है।
नदियों में जले व अधजले शवों व लाशों, को भी प्रवाहित किया जाता है। इससे जल प्रदूषित होता है।
भारत में हरिद्वार, इलाहाबाद, गया, वाराणसी आदि नदी के किनारे बसे पवित्र नगर हैं,
जहाँ हिन्दू संस्कृति में आस्था रखने वाले लोग अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियाँ गंगा या अन्य नदियों में प्रवाहित करते हैं।
गंगा के किनारे शवदाह करने की प्रथा भी सदियों से चली आ रही है।
जली लकड़ियों की राख व अस्थियाँ गंगा एवं नदियों में विसर्जित कर दी जाती है।
इससे नदियों का जल लगातार प्रदूषित हो रहा है।
जल प्रदूषण का प्रभाव
(EFFECT OF WATER POLLUTION)
जल जीवों के प्रथम उपभोग की वस्तु है।
जल का उपयोग जैविक एवं अजैविक क्रियाओं में अनेक रूपों में किया जाता है।
अनेक संसाधनों के सफल संचालन एवं विकास के लिए जल सहायक है।
आज सभी देशों में दुर्भाग्यवश जलराशियाँ कूड़ा-करकट, नगरीय एवं औद्योगिक कचरा एवं विषैले पदार्थों के निस्तारण का ही माध्यम बन गई है।
अन्य प्रदूषणों की भाँति जल प्रदूषण ने भी आज के युग में गम्भीर समस्या का रूप धारण कर लिया है।
जल प्रदूषण के विभिन्न कुप्रभाव निम्नलिखत हैं-
(अ) जलीय जीव पर प्रभाव (Effect on Aquatic Life) –
विभिन्न प्रकार के जल स्त्रोत, जैसे-नदियाँ, तालाब, पोखर, झील एक प्रकार से पूर्ण पारिस्थतिक तन्त्र है।
इनमे अनेक प्रकार की जीव जन्तु एवं वनस्पतियाँ जो अजैविक घटकों के साथ अपना सामंजस्य बनाए रखते हैं।
समस्त जैविक घटक सम्मिलित रूप से एक खाद्य-श्रृंखला का निर्माण करते हैं।
विभिन्न प्रकार से जल प्रदूषित हो जाने के कारण वनस्पति एवं जीव-जन्तु तत्काल प्रभावित हो जाते हैं।
जिससे जलीय पादपों एवं जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
जलीय प्रदूषण का वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत वर्णन निम्नानुसार है:-
(1) वनस्पतियों पर प्रभाव (Effect on vegetation):-
जल प्रदूषण से पौधों पर निम्नलिखित प्रबाव पड़ता है।
1. कृषि बहिःस्त्राव द्वारा प्रदूषित जल में पौधों के पोषक तत्व उपस्थित होने के कारण शैवाल इत्यादि अधिक विकसित होते हैं,
जिससे सूक्ष्म जीवाणुओं की तीव्र वृद्धि होती है,
जो जलीय O₂ को कम कर देते हैं।
ऐसी परिस्थिति में अधिकांश पौधे नष्ट हो जाते हैं।
2. यदि जल प्रदूषण वाहित मल द्वारा होता है तो जल की ऊपरी सतह पर विभिन्न रंगों के मल कवक (sewage fungus) फैल जाते हैं
जिनमें विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का समुदाय पाया जाता है, जैसे-कवक, जीवाणु, शैवाल, म्यूकर एवं मॉस इत्यादि।
ये अन्य पादप जातियों की वृद्धि में हस्तक्षेप करते हैं।
3. प्रदूषित जल में मल कवक का आवरण होने एवं जल में काई पाए जाने के कारण सूर्य का प्रकाश जल के अन्दर तक नहीं पहुँच पाता है
फलतः जलीय पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है।
4. जल प्रदूषण के कारण जल के तापमान में वृद्धि हो जाती है जिससे पौधों में रसाकर्षण न होने के कारण वे सूखकर मर जाते हैं।
5. कीटनाशियों जैसे डी.डी.टी तथा अन्य रोगनाशकों द्वारा प्रदूषित जल में पाई जाने वाली वनस्पतियों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया सुचारु रूप से नहीं हो पाती।
(2) जीव-जन्तुओं पर प्रभाव ( Effect on animals):-
प्रदूषित जल में पाई जाने वाली वनस्पतियों के प्रदूषित हो जाने के कारण जल पारिस्थितिकी में उपस्थित सभी जीव-जन्तुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
इनमें से कुछ प्रभाव निम्न है-
1. प्रदूषित जल में ऑक्सीजन की नितान्त कमी होती है जिससे जलीय जीव-जन्तु ऑक्सीजन के अभाव में मरने लगते हैं।
2. भयंकर रूप से प्रदूषित जल में ऐसे सभी जन्तु जिनके लिए स्वच्छ जल आवश्यक है वे नष्ट हो जाते हैं।
ऐसे जल में अनेक प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया एवं प्रोटोजोआ पाए जाते हैं।
3. औद्योगिक इकाइयों से निस्तारित प्रदूषित जल के नदियों में विसर्जन के कारण शैवाल की वृद्धि हो जाती है
जिससे श्वसन के लिए ऑक्सीजन की माँग बढ़ जाती है
और जलीय जीव-जन्तु विशेष रूप से मछलियों पर सर्वाधिक कुप्रभाव पड़ता है।
4. मल-मूत्र एवं बहिःस्त्राव के जल में विसर्जन से सल्फेट, नाइट्रेट और फास्फोरस इत्यादि रासायनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है
जिससे समीपवर्ती नदियों, झीलों, तालाबों में विशेष प्रकार की वनस्पर्तियाँ पनपने लगती हैं।
धीरे-धीरे जलाशय सूखने लगते हैं और उसमें पाए जाने वाले जीव-जन्तु समाप्त हो जाते हैं।
5. गहन कृषि के अन्तर्गत अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए जो कृत्रिम खाद, दवाइयाँ, कीटनाशक, पेस्टीसाइड और जैविक खाद प्रयोग किए जाते हैं
जो कि जल के माध्यम से जल राशियों में प्रवेश कर जाते हैं
और भूमि एवं जलमण्डल में जीवों का पारिस्थितिक तंत्र को विकृत कर देते हैं, जल में 0, की कमी कर देते हैं।
6. तैलीय प्रदूषण के कारण समुद्रों में पाए जाने वाले जलीय जीव-जन्तु विशेषकर मछलियाँ एवं जल पक्षी मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं।
(ब) मनुष्यों पर प्रभाव (Effect on Human Beings)-
प्रदूषित जल का प्रभाव न केवल जलीय जीव-जन्तुओं पर पड़ता है बल्कि मनुष्य भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है
क्योंकि जल मानव पर्यावरण का ही एक अंग है।
मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषित जल के प्रभाव का अध्ययन निम्नानुसार किया जा सकता है।
(1) पेय जल द्वारा (By drinking water):-
जल कुछ विशेष प्रकार के रोगाणुओं का अच्छा वाहक होता है।
प्रदूषित जल में नाना प्रकार के रोगाणु पाए जाते हैं जिसे पीने से अनेक प्रकार के रोग फैलते हैं जो निम्नलिखित है:-
(I) जीवाणु (Bacteria)-
रोगजनक जीवाणु मनुष्यों में हैजा, टाइफाइड, डायरिया एवं पेचिस रोग फैलाते हैं।
(II) विषाणु (Virus)-
विषाणुओं से पोलियो, यकृत शोथ, पीलिया इत्यादि रोग फैलते हैं।
(iii) प्रोटोजोआ (Protozoa)-
इससे मनुष्यों में पेट तथा आँत सम्बन्धी रोग, अतिसार, यकृत इत्यादि फैलते हैं।
(2) जल के सम्पर्क द्वारा (By contact of water):-
जल स्त्रोतों के प्रदूषित जल में अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु तथा परजीवी पाए जाते हैं।
ये परजीवी प्रदूषित जल में मनुष्यों एवं पशुओं के नहाने, धोने तथा कपड़ा साफ करने एवं अन्य कार्यों के लिए प्रयोग करते समय उनके चमड़े को छेदकर शरीर में पहुँच जाते हैं
जिससे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
(3) जल में उपस्थित रासायनिक पदार्थों द्वारा (By chemical substances present in water) :-
प्रदूषित जल में उपस्थित रासायनिक पदार्थों द्वारा मनुष्य के स्वास्थ्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:-
1. अधिक फेरस बाई-कार्बोनेट युक्त जल से बदहजमी की शिकायत होती है।
2. अधिक फ्लोराइड की मात्रा दाँतों को लाभ के स्थान पर हानि पहुँचाती है।
3. जल में उपस्थित नाइट्रेट एवं नाइट्राइट की अधिकता हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन वहन क्षमता को कम कर देती है।
4. पेय जल में पारे की अधिकता से मनुष्यों में विकृतियों हो जाती है।
(स) अन्य प्रभाव (Other Effects):
प्रदूषित जल के कारण होने वाले अन्य प्रभाव निम्नलिखित है-
1. प्रदूषित जल में अनेक प्रकार के सूक्ष्मजीव, जैसे-शैवाल इत्यादि उपस्थित होते हैं
जिससे जल का रंग परिवर्तित हो जाता है जो पीने में अरूचिकर होता है।
2. रासायनिक उर्वरकों से जब जल का प्रदूषण होता है तो अत्यधिक जलकुम्भी तथा शैवाल की वृद्धि होती है
जिससे जल स्त्रोत धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं।
3. जल में अमोनिया (NH₁) एवं हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S) घुले होने के कारण उसमें अरुचिकर गन्ध एवं स्वाद उत्पन्न हो जाता है।
4. अम्ल प्रदूषित जल से धातु की पाइपों एवं बर्तनों का क्षरण होता है।
जल प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय [MEASURES TO CONTROL WATER POLLUTION]
जल को प्रदूषित होने से बचाना हमारा प्राथमिक ध्येय होना चाहिए क्योंकि जल अतिमहत्वपूर्ण पदार्थ है
जिसके अभाव में मानव व वनस्पति-जगत जीवित नहीं रह सकता।
जल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाए किए जा सकते हैं-
1. उद्योगों के रसायन एवं गन्दे अपशिष्ट युक्त जल को नदियों, सागरों, नहरों, झीलों आदि में उपचारित किए बिना न डाला जाए।
2. उद्योगों को ऐसे संयन्त्र लगाने को कहा जाए जिनसे वे प्रदूषित जल को उपचारित करके जलराशियों में प्रवाहित करें।
3. सीवर तथा मल-जल को नादियों आदि में सीधा न डाला जाए
तथा शोधक संयन्त्रों की सहायता से गन्दे जल को एकत्रित कर व साफ करके खेतों की सिंचाई तथा अन्य उपयोगों में लाया जाए।
4. जल को स्वच्छ करते समय एक सीमित मात्रा एवं नियमित दवाओं का प्रयोग किया जाए
तथा जल की शुद्धिकरण प्रक्रिया में ऐसा कोई तत्व या रसायन प्रयोग न किया जाए
जिसका मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
5. मुदों को जलाने के लिए विद्युत शवदाह गृहों (electric crematoriums or mortuaries) का निर्माण किया जाना चाहिए।
6. औद्योगिक अपशिष्टों के उपचार का इन्तजाम किया जाना चाहिए। ऐसा न करने वाली औद्योगिक इकाइयों पर वैधानिक नियमों का कड़ाई से पालन कराने की योजना होनी चाहिए।
7. जल प्रदूषण रोकने के लिए सामान्य जनता में जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिए।
सभी प्रकार के प्रचार माध्यमों द्वारा जल संरक्षण के उपायों का व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए।
8.स्वच्छ जल के दुरूपयोग पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।
9. जल में ऐसे जीव और वनस्पतियाँ विकसित की जाएँ जो जल को शुद्ध करने में सहायक हों।
10. नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करके भी जल प्रदूषण के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
11. मल विसर्जन से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए सुलभ इण्टरनेशनल जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद लेनी चाहिए।
सुलभ शौचालयों का निर्माण करने से जल प्रदूषण की मात्रा में कमी लाई जा सकती है।
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