घर्षण विद्युत् (Frictional Electricity) किसे कहते हैं
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घर्षण विद्युत् –
साधारण अनुभव की बात है कि जब हम सूखे वालों पर कंघी करते हैं,
तो कंघी में कागज के छोटे-छ टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण उत्पन्न हो जाता है।
यह आकर्षण गुरुत्वाकर्षण से भिन्न होता है।
ई. पू. 6 वीं शताब्दी में यूनानी वैज्ञानिक थेल्स (Thales), जो यूनानी विज्ञान के संस्थापक (जनक) कहे जाते हैं, ने ज्ञात किया था कि ऐम्बर (Amber) नामक पदार्थ को ऊन से रगड़ने पर उसमें कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों हल्के पंखों, धूल के कणों या पत्तियों के टुकड़ों को आकर्षित करने का गुण आ जाता है।
थेल्स के पश्चात् लगभग 2000 वर्षों तक इस खोज की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान नहीं गया।
कालान्तर में 16वीं शताब्दी में साम्राज्ञी एलिजाबेथ प्रथम के चिकित्सक विलियम गिलबर्ट (William Gilbert, 1540 -1603) ने ऐसे कई पदार्थों का पता लगाया
जो रगड़ने पर ऐम्बर के समान ही न्यूनाधिक मात्रा में हल्की वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करते थे।
सन् 1646 में सर थॉमस ब्राउन (Sir Thomas Brown) ने उस ऊर्जा को, जिसके कारण किसी पदार्थ को रगड़ने पर उसमें आकर्षण का गुण उत्पन्न हो जाता है,
विद्युत् या इलेक्ट्रिसिटी (Electricity) के नाम से सम्बोधित किया।
विद्युत् या इलेक्ट्रिसिटी शब्द की उत्पत्ति ऐम्बर से हुई है। ऐम्बर का ग्रीक नाम इलेक्ट्रम (Electrum) है।
इस प्रकार, उस ऊर्जा को, जिसके कारण किसी पदार्थ में हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण उत्पन्न हो जाता है, विद्युत् कहते हैं।
चूँकि यह विद्युत् रगड़ने से या घर्षण से उत्पन्न होती है, इसलिए इसे घर्षण-विद्युत् कहते हैं।
जिस पदार्थ में हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण उत्पन्न हो जाता है,
उसे विद्युन्मय (Electrified) कहते हैं।
किसी पदार्थ के विद्युन्मय हो जाने पर यह कहा जाता है कि पदार्थ ने ‘आवेश’ (Charged) ग्रहण कर लिया है,
अतः विद्युन्मय पदार्थ को आवेशित’ (Charged) पदार्थ भी कहते हैं।
नोट: भौतिकी की उस शाखा को जिसके अंतर्गत स्थिर आवेशों का अध्ययन किया जाता है, स्थिर वैद्युत (Static Electricity) तथा उस शाखा को जिसके अंतर्गत गतिशील आवेशों अथवा विद्युत् धारा का अध्ययन किया जाता है, धारा विद्युत् (Current Electricity) कहते हैं।
आवेशों के दो प्रकार (Two Kinds of Charges)
आवेशों के प्रकार की जानकारी के लिए हम निम्न प्रयोग करते हैं—
प्रयोग 1. काँच की एक छड़ लेते हैं। उसे रेशम के कपड़े से रगड़कर धागे से लटका देते हैं (चित्र 1) |
अब काँच की एक अन्य छड़ लेते हैं, उसे भी रेशम के कपड़े से रगड़ते हैं तथा धागे से लटकी हुई छड़ के पास लाते हैं।
हम पाते हैं कि धागे से लटकी हुई छड़ प्रतिकर्षित हो जाती है।
प्रयोग 2. एबोनाइट की एक छड़ लेते हैं।
उसे ऊनी कपड़े या बिल्ली की खाल से रगड़कर प्रयोग की 1 भांति धागे से लटका देते हैं (चित्र 2 )।
अब एबोनाइट की एक अन्य छड़ को ऊनी कपड़े या बिल्ली की खाल से रगड़कर पहली छड़ के पास लाते हैं।
ऐसा करने से पहली छड़ प्रतिकर्षित हो जाती है।
प्रयोग 3. अब काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़कर धागे से लटका देते हैं (चित्र 3) तथा एबोनाइट की छड़ को ऊनी कपड़े या बिल्ली की खाल से रगड़कर काँच की छड़ के पास लाते हैं।
ऐसा करने से दोनों छड़ें एक-दूसरे की ओर आकर्षित होती हैं।
उपर्युक्त प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि काँच की छड़ में उत्पन्न आवेश एबोनाइट की छड में उत्पन्न आवेश से भिन्न प्रकार का है।
प्रारम्भ में काँच में उत्पन्न आवेश को काँचाभ (Vitreous) आवेश तथा एबोनाइट की छड़ में उत्पन्न आवेश को रेजिनी (Resinous) आवेश से सम्बोधित किया गया।
अमेरिकी वैज्ञानिक बेन्जामिन फ्रेंकलिन (Benjamin Franklin, 1706-1790) ने काँचाभ आवेश को धनावेश (Positive Charge) तथा रेजिनी आवेश को ऋणावेश (Negative charge) कहा।
आवेश के नामकरण की यह परिपाटी आज भी प्रचलित है।
इस प्रकार आवेश दो प्रकार के होते हैं –
(i) धनावेश-
काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ने पर काँच की छड़ में उत्पन्न आवेश को धनावेश कहते हैं।
(ii) ऋणावेश–
एवोनाइट की छड़ को ऊनी कपड़े या बिल्ली की खाल से रगड़ने पर एबोनाइट की छड़ में उत्पन्न आवेश को ऋणावेश कहते हैं।
उपर्युक्त दर्शाये गये प्रयोग 1 में काँच की दोनों छड़ों में धनावेश था।
दोनों छड़ें पास लाने पर एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं।
इससे सिद्ध होता है कि धनावेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
प्रयोग 2 में एबोनाइट की दोनों छड़ों में ऋणावेश था।
दोनों छड़ें पास लाने पर एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं। इससे सिद्ध होता है कि ऋणावेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
प्रयोग 3 में काँच की छड़ में धनावेश तथा एबोनाइट की छड़ में ॠणावेश था।
काँच की छड़ के पास एबोनाइट की छड़ को लाने पर वे एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं।
इससे सिद्ध होता है कि धनावेश और ऋणावेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
उपर्युक्त प्रयोगों के आधार पर निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं –
(1) सजातीय आवेशों में प्रतिकर्षण होता है तथा (ii) विजातीय आवेशों में आकर्षण होता है।
ध्यान रहे कि काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ने पर काँच की छड़ में घनावेश तो उत्पन्न होता ही है,
साथ ही साथ रेशम के कपड़े में भी उतने ही परिमाण का ऋणावेश उत्पन्न हो जाता है।
इसी तरह एबोनाइट की छड़ को ऊनी कपड़े से रगड़ने पर एबोनाइट की छड़ में ऋणावेश तथा ऊनी कपड़े में धनावेश उत्पन्न हो जाता है।
घर्षण विद्युत् से सम्बन्धित प्रयोगों के आधार पर नीचे एक सारणी (Table) दी जा रही है, जिसमें दो स्तम्भ हैं।
धनावेश स्तम्भ में लिखी वस्तु को उसके सामने ऋणावेश स्तम्भ में लिखो वस्तु से रगड़ने पर पहली वस्तु में धनावेश तथा दूसरी वस्तु में ऋणावेश उत्पन्न हो जाता है।
एक ही स्तम्भ में लिखी आवेशित वस्तुएँ एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं,
जबकि विभिन्न स्तम्भ में लिखी आवेशित वस्तुएँ एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं।
धनावेश | ऋणावेश | |||||||
कांच की छड़ | रेशम का कपड़ा | |||||||
ऊनी कपड़ा | एम्बर , एबोनाइट , रबड़ की छड़ | |||||||
ऊनी कोट | प्लास्टिक सीट | |||||||
ऊनी गलीचा | रबर के जूते |
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