आवर्तकाल किसे कहते हैं
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जानिए, आवर्तकाल किसे कहते हैं
आवर्तकाल (Periodic Time)–
कुण्डली के एक पूर्ण घूर्णन परिपथ में उत्पन्न धारा का मान एक दिशा में शून्य से अधिकतम होकर शून्य हो जाता है।
इसके बाद विपरीत दिशा में भी इसका मान शून्य से अधिकतम होकर फिर शून्य हो जाता है।
इसे धारा का एक चक्र कहते हैं।
प्रत्यावर्ती धारा के एक चक्र पूर्ण होने में लगे समय को उसका आवर्तकाल कहते हैं।
इसी प्रकार, प्रत्यावर्ती वोल्टेज के एक चक्र पूर्ण होने में लगे समय को उसका आवर्तकाल कहते हैं।
I = I0 sin ωt …(1)
V = V0 sin ωt ….(2)
समीकरण (1) या (2) में t के मान को बढ़ाकर (t+ 2π/ω) कर दिया जाये तो V या I के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता।
अतः प्रत्यावर्ती वोल्टेज या प्रत्यावर्ती धारा का आवर्तकाल T = 2π/ω
जहाँ ω धारा या वोल्टेज की कोणीय आवृत्ति है।
मोटर स्टार्टर (Motor Starter)
सिद्धान्त-
यदि आर्मेचर पर लगाया गया वि. वा. बल E तथा उसके चुम्बकीय क्षेत्र में घूमने पर उसमें उत्पन्न विरोधी वि. वा. बल e हो, तो आर्मेचर में बहने वाली धारा
I = E- e /R…….( 1 )
जहाँ R आर्मेचर का प्रतिरोध है।
आर्मेचर का प्रतिरोध R बहुत कम होता है। अत: समीकरण (1) से व्यक्त धारा 1 का मान मोटर को चलाने के लिए पर्याप्त होता है।
मोटर को स्टार्ट करते समय वि. वा. बल e का मान शून्य होता है।
अत: आर्मेचर में बहने वाली धारा का मान अधिक होता है।
यदि मोटर के घूमने का कोणीय वेग ω हो, तो e ∝ ω या e = Kω, जहाँ K एक नियतांक है।
I= E- Kω / R
प्रारम्भ में ω = 0,
अत: Imax = E/ R (अधिकतम धारा)।
इस तीव्र धारा से आर्मेचर क्षतिग्रस्त हो सकता है।
इसी प्रकार यदि विद्युत् पूर्ति एकाएक बन्द हो जाती है, तो आर्मेचर में प्रबल वि. वा. बल उत्पन्न हो जाता है जो आर्मेचर को नुकसान पहुँचा सकता है।
अतः मोटर में स्टार्टर का उपयोग किया जाता है।
मोटर के आर्मेचर को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए उसके साथ श्रेणी क्रम में उच्च मान का परिवर्ती प्रतिरोध लगाया जाता है जिसे स्टार्टर कहते हैं ।
बनावट –
चित्र में स्टार्टर की रचना प्रदर्शित की गई है।
इसमें एक विद्युत् चुम्बक F होता है जो श्रेणी क्रम में मोटर M से जुड़ा होता है।
H एक लोहे की छड़ है जो अक्ष O के परित: घूम सकती है।
यह छड़ घूमते हुए श्रेणी में जुड़े प्रतिरोधों r1 , r2 ,r 3 व r4 को स्पर्श करती जाती है।
S एक स्प्रिंग है जो छड़ H को उसकी प्रारम्भिक स्थिति में लाती है।
कार्य-विधि-
मोटर को चालू करने के लिए छड़ H को स्टार्टर के सिरे A से स्पर्श कराया जाता है।
इस स्थिति में स्टार्टर के सम्पूर्ण प्रतिरोध में से धारा प्रवाहित होती है।
विद्युत् चुम्बक F छड़ H को आकर्षित करता है।
अतः उसका सिरा A से E की ओर सरकने लगता है और परिपथ का प्रतिरोध क्रमशः कम होने लगता है, फलस्वरूप धारा का मान क्रमशः बढ़ने लगता है।
इस दौरान मोटर की चाल क्रमशः बढ़ती जाती है तथा विरोधी वि. वा. बल का मान भी क्रमशः बढ़ता जाता है।
जब छड़ H का सिरा E को स्पर्श करता है, तो मोटर पूर्ण चाल से चलने लगती है
तथा विरोधी वि. वा. बल धारा के मान को कम करने के लिए पर्याप्त हो जाता है।
अब स्टार्टर परिपथ से पूर्णत: हट जाता है।
जब मोटर को बन्द किया जाता है या विद्युत् पूर्ति अकस्मात् फेल हो जाती है, तो विद्युत् चुम्बक F का चुम्बकत्व समाप्त हो जाता है
और स्प्रिंग S छड़ H को खींचकर उसको प्रारम्भिक स्थिति में ले आता है।
नोट: –
कम शक्ति के मोटर में स्टार्टर की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि कम शक्ति की कुण्डली शीघ्रता से चाल पकड़ लेती है।