अन्योन्य प्रेरण

            अन्योन्य प्रेरण                 (Mutual Induction)

अन्योन्य प्रेरण –

चित्र के अनुसार दो कुण्डली P और S लेते हैं।

P के साथ एक बैटरी B और कुंजी K तथा कुण्डली S के साथ धारामापी G लगा देते हैं।

जब कुंजी K के प्लग को लगाते हैं, तो जितने समय में कुण्डली P में बहने वाली धारा का मान शून्य से अधिकतम होता है

उतने समय में कुण्डली S से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में वृद्धि होती है।

अतः कुण्डली S में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है, जिससे धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है।

प्लग को निकालने पर कुण्डली P में बहने वाली धारा का मान अधिकतम से शून्य हो जाता है।

अतः कुण्डली S से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में एकाएक कमी होती है।

अन्योन्य प्रेरण

फलस्वरूप उस कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है, जो मुख्य धारा की दिशा में ही बहती है।

इसी प्रकार, यदि कुण्डली P में बहने वाली धारा के मान में किसी साधन से लगातार परिवर्तन करते जायें,

तो कुण्डली S से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होगा।

अत: कुण्डली S में लगातार धारा प्रवाहित होने लगेगी।

इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।

इस प्रकार जब किसी कुण्डली से प्रवाहित होने वाली विद्युत् धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है,

तो पास स्थित दूसरी कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है।

अतः उस कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।

जिस कुण्डली में धारा के मान में परिवर्तन होता है, उसे प्राथमिक कुण्डली कहते हैं और जिस कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है,

उसे द्वितीयक कुण्डली कहते हैं।

 अन्योन्य प्रेरकत्व या अन्योन्य प्रेरण गुणांक (Mutual Inductance or Co-efficient of Mutual Induction)

यदि प्राथमिक कुण्डली में धारा I प्रवाहित करने से द्वितीयक कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स हो, तो

Φ ∝ I

या Φ = MI  ……….(1)

जहाँ M एक नियतांक है जो दोनों कुण्डलियों में फेरों की संख्या, द्वितीयक कुण्डली के क्षेत्रफल तथा माध्यम पर निर्भर करता है।

इसे दोनों कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व या अन्योन्य प्रेरण गुणांक कहते हैं।

यदि I = 1 हो, तो समीकरण (1) से,

Φ = M

अतः किन्हीं दो कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व का आंकिक मान द्वितीयक कुण्डली से बद्ध उस चुम्बकीय फ्लक्स के बराबर होता है,

जो उस समय उत्पन्न होता है, जबकि प्राथमिक कुण्डली में एकांक धारा प्रवाहित की जाती है।

अब यदि प्राथमिक कुण्डली में बहने वाली धारा के मान में परिवर्तन किया जाये,

तो द्वितीयक कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में भी परिवर्तन होगा।

अत: फैराडे के विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के द्वितीय नियम से,

प्रेरित विद्युत्-वाहक बल e = – dΦ /dt

=- d(MI)/ dt [समीकरण (1) से मान रखने पर)

या e= -M dI /dt ….(2)

यदि dI/dt = 1 हो, तो समीकरण (2) से,

e=- M

अतः दो कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व आंकिक रूप से द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित उस विद्युत् वाहक बल के बराबर होता है

 जो प्राथमिक कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर इकाई होने पर उत्पन्न होता है।

अन्योन्य प्रेरण का मात्रक –

S.I. पद्धति में अन्योन्य प्रेरकत्व का मात्रक हेनरी है। इसे H से प्रदर्शित करते हैं।

(i) समीकरण (1) से,

M=Φ/ I

इस सूत्र में यदि Φ = 1 वेबर तथा I =1 ऐम्पियर हो, तो

M= 1 वेबर /1 ऐम्पियर = 1 हेनरी

अतः यदि प्राथमिक कुण्डली में 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करने पर द्वितीयक कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स 1 वेबर हो,

तो दोनों कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व 1 हेनरी होता है।

(ii) समीकरण (2) से,

M=- e/dI/dt

इस सूत्र में यदि e=1 वोल्ट तथा dI/dt =1 ऐम्पियर / सेकण्ड हो, तो

M=1 वोल्ट / 1 ऐम्पियर/सेकण्ड = 1 हेनरी

अतः यदि प्राथमिक कुण्डली में धारा परिवर्तन की दर 1 ऐम्पियर / सेकण्ड होने पर द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वि. वा. बल का मान 1 वोल्ट हो,

तो दोनों कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व । हेनरी होता है।

स्वप्रेरण और अन्योन्य प्रेरण में अंतर

स्वप्रेरण अन्योन्य प्रेरण
1. किसी कुंडली में बहने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन करने पर उसी कुंडली में ही प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है । इस घटना को स्वप्रेरण कहते हैं

 

2. इसमें एक कुंडली होती है ।

3. प्रेरित धारा मुख्य धारा के मान को प्रभावित करती है।

1. किसी कुंडली में बहने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन करने पर पास रखी दूसरी वस्तुओं में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है। इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं ।

2. इसमें दो कुंडलियां होती है।

3. प्रेरित धारा दूसरी कुंडली में प्रवाहित होती है। अतः मुख्य धारा प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं होती है।

 

 

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